Book Title: Chandani Bhitar ki Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 2
________________ हम चांदनी से परिचित हैं। आकाश में चाँद को देखते हैं, उसकी चाँदनी धरती पर चमकती है। मनुष्य शांति, शीतलता एवं प्रकाश सबका एक साथ अनुभव करता है। अनजाना है चिदाकाश, अनजाना है-चाँद और अनजानी है चाँदनी, इसलिए कि ये सब भीतर हैं। भीतर में जो है, उसे देखने की खिड़कियां बंद हैं, दरवाजे भी बंद हैं। यदि हम इन्द्रियों की दिशा बदलें, उनकी बहिर्मुखता को अन्तर्मुखता में बदल दें, मन की चंचलता पर कोई अंकुश लगा पाएं, खिड़कियां खुलती-सी नजर आएगी। - हरिकेशबल की खिड़कियां खुल चुकी थी इसलिए उसे यह कहने का अधिकार मिलातपस्या श्रेष्ठ है, जाति श्रेष्ठ नहीं। भृगुपुरोहित के पुत्रों ने भीतर में झांका, तभी उन्होंने कहा-पिता ! आत्मा अमूर्त है, उसे इन्द्रियों द्वारा नहीं देखा जा सकता। भीतर की ज्योति विशद हुई और महारानी कमलावती बोल उठी-नरदेव ! केवल धर्म ही त्राण है, अन्य कोई त्राण नहीं है। अनाथ मुनि ने भीतर की ज्योत्सना में झांक कर सम्राट् श्रेणिक से कहा-मगध के अधिपति श्रेणिक! तुम स्वयं अनाथ होकर मेरे नाथ कैसे बनोगे? अर्हत् अरिष्टनेमि की अतीन्द्रिय चेतना जागृत थी। बाड़ों और पिंजरों में कैद किए हुए पशुओं और पक्षियों का स्वर उन कानों से सुना, जो दूसरों का अमंगल कर मंगल गीत सुनने को तैयार नहीं ये सारे स्वर साक्ष्य हैं भीतर की चाँदनी के। इनको सुनने के लिए अपेक्षित है, भीतर की चाँदनी जागे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 204