Book Title: Chahe to Par Karo
Author(s): Vairagyarativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna

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Page 2
________________ जय वीयराय ! हे वीतराग परमात्मा आपकी सदा जय हो । समा लेने का मुझ में न तो सामर्थ्य है और न तो क्षमता, फिर भी विष को अमृत बनाने वाली, आपकी करुणा के दो बूंद भी मुझे मिल जाएँ, तो मैं अपने आपको बहुत भाग्यवान समझूगा । हे प्रभु ! इतनी करुणा हम पर जरुर करना । मैंने सुना है कि आपके द्वार से कोई कभी खाली हाथ नहीं लौटता है। श्रुतप्रेमी युवा संस्कार ग्रूप - नागपुर हे वीतराग प्रभु ! आपकी सदा जय हो । हे जगद्गुरु परमात्मा ! आपके प्रति मेरा निःस्वार्थ प्रेम है, आप मेरे प्राणप्रिय हो। आपके पास आने का मुझे बारबार मन होता है, आपको देखके मेरी आँखे कभी संतृप्त नहीं होती, मेरे मन के स्मृतिपट पर हमेशा आपकी याद रहती है। ये जिह्वा आपके ही गुणगान गाया करती है, और अधर पर आपकी ही जयजयकार होती है। हे परमकृपालु परमात्मा ! आप मेरे अणु-अणु में व्याप्त हो । आप मुझे इतने अच्छे क्यों लगते हो, जानते हो? क्योंकि आप 'वीतराग' हो । आपने स्वार्थ, राग, द्वेष, लोभ आदि को छुआ तक नहीं है। आपने इन सबको ठुकराया है। आपकी ये वीतरागता का मूल है 'करुणा' । हे दीनानाथ परमात्मा ! वीतरागता के विशाल समुद्र को मेरे छीप जैसे छोटे-से हृदय में प्रवचन प्रकाशन

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