Book Title: Bruhatkalpa Sutra Author(s): Hastimal Maharaj Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 6
________________ 413 कि शीतकाल के आरंभ में अर्थात् चातुर्मास के अन्त में वस्त्र ग्रहण कर सकते हैं, वर्षा के आरंभ (चातुर्मास) में नहीं। अधिकार ८–९ और १० में कहा है कि वस्त्र ग्रहण, शय्या ग्रहण और वन्दन छोटे बड़े के क्रम से ही करना चाहिये। ११ वें १२वें अधिकार में गृहस्थ के घर पर साधु-साध्वियों के लिये ठहरने और व्याख्यान का निषेध है, अपवाद भी बताया गया है। १३ वें अधिकार में पाट आदि पाडिहारिक शय्या संथारा के देने की विधि कही गई है। १४ वें अधिकार में शय्या वापिस देते समय दूसरे साधु आ जाय तो अवग्रह की विधि बतलायी गई है। १५ वें अधिकार में कहा है कि गांव के बाहर सेना का पड़ाव हो तो भिक्षा के लिये वहां जाकर रात में नहीं रहना चाहिए। १६ वें अधिकार में साधु-साध्वियों के लिये गॉव के चारों ओर ५५ --५ कोश का अवग्रह लेकर रहने का विधान है। चतुर्थ उद्देशक चतुर्थ उद्देशक में १६ अधिकार हैं। प्रथम, द्वितीय और तृतीय अधिकार में क्रमश: तीन प्रकार के अनुद्घातिक, पारांचिक और अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त के कारण कहे गये हैं। चतुर्थ अधिकार में कहा है कि तीन प्रकार के मनुष्य दीक्षा, मुंडन, शिक्षा, उपस्थापन, संभोग और संवास के अयोग्य हैं। पंचम अधिकार में अविनीत आदि तीन प्रकार के पुरुषों को वाचना के अयोग्य और विनीत आदि को वाचना योग्य कहा है। षष्ठ अधिकार में दुष्ट, मूढ आदि तीन प्रकार के मनुष्य को दुर्बोध्य और अदुष्ट आदि को सुखबोध्य कहा है। सप्तम अधिकार में कहा है कि कष्ट में ग्लानि पाते हुए साधु को साध्वी एवं साध्वी को साध आवश्यकता समझकर सदभाव से सकारण सहारा दे तो आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता। अष्टम अधिकार में कहा है कि काल या क्षेत्र की पहर तथा कोशरूप मर्यादा का उल्लंघन कर आहार आदि का उपभोग करने से साधु.साध्वी प्रायश्चित्त के अधिकारी होते हैं। नवम अधिकार में आकस्मिक कोई अनेषणीय वस्तु आ जाय तो साधु को क्या करना चाहिये, यह बताया गया है। दशम अधिकार में कल्पस्थित और अकल्पस्थित साधु के लिये औद्देशिक आहार की विधि कही गई है। एकादशवें अधिकार में साधुगणावच्छेदक और आचार्य आदि के गणान्तर करने की विधि बतलाई है। १२वें अधिकार में कदाचित् किसी साधु का आकस्मिक निधन हो जाय और साधु परठना चाहे तो उसकी विधि बतलाई है। तेरहवें अधिकार में कहा है कि कदाचित् मोहोदय से साधु का किसी के साथ कलह हो जाय तो तत्काल उसका उपशम करना चाहिये, बिना शान्ति किये भिक्षा आदि के लिये जाना नहीं कल्पता। चौदहवें अधिकार में परिहार तप वाले के साथ कैसा व्यवहार किया जाय, यह बताया गया है। पन्द्रहवें अधिकार में कहा है कि गंगा, यमुना जैसी पांच बड़ी नदियां एक मास में २.-३ बार उतरना नहीं कल्पना। कैसी दशा में उतर सकते हैं, यह भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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