Book Title: Bruhatkalpa Sutra Author(s): Hastimal Maharaj Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 1
________________ बृहत्कल्पसूत्र आचार्यप्रनर श्री हस्तीमल जी म.स. बृहत्कल्पसूत्र में साधु साध्वियों के लिए स्वीकृन उत्सर्ग एवं अपवाद नियमों का उल्लेख है। इसमें प्रवारा, आहार, वस्त्र, पात्र, विहार, साधु एवं साध्वी के पारस्परिक व्यवहार एवं दोनों के विशेष आवरण सबंधी निर्देश हैं। यह बृहत्कल्पसूत्र कल्पसूत्र से मिल है। कल्पन जो दशाश्रुतरकन का एक भाग है जबकि बृहत्कल्पसूत्र एक स्टनम सूत्र है. आचार्यप्रवर श्री हस्तीगल जी महाराज सा ने आज से ५२ वर्ष पूर्व बृहत्कल्पसूत्र का टीका सहित सम्पादन किया था। उसमें जो बृहत्कल्पसूत्र का संक्षिप्त परिचय दिया गया था, उसे ही यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। -सम्पादक जैन शास्त्रों को प्रमुखत: चार भागों में बांटा गया है- अंग, उपांग. मूल और छेद। उनमें बृहत्कल्प का स्थान भी छेद सूत्रों में आता है। आगमों में विभिन्न जगह 'दसाकप्पववहाराणं उद्देसणकालणं' ऐसा निर्देश आता है, जिसमें दशाश्रुत स्कंध के साथ बृहत्कल्प का भी कल्प के संकेत से उल्लेख किया गया है। ज्ञात होता है कि इसका पूर्व नाम कल्पसूत्र ही रखा गया हो, क्योंकि वृत्तिकार आचार्य मलयगिरि भो इसी नाम से परिचय देते हैं। स्थानांग और आवश्यक आदि में कल्प नाम का उल्लेख होते हुए और वृत्ति में भी कल्प नाम से परिचय होते हुए इसको बृहत्कल्प नाम से क्यों कहा जाता है, 'निगूढाशया हि आचा:, ऐसा होने पर भी यथासाध्य कारण का पता लगाना चाहिए। संस्कृत में एक नियम है कि 'संभवव्यभिचाराभ्यां स्याद्विशेषणमर्थवत्' विशेषण का संभव हो या उसके बिना दोष आने की संभावना हो, तभी विशेषण की नाम के साथ सार्थकता होती है। इस दृष्टि से देखने पर ज्ञात होता है कि बृहत्कल्प और दशाश्रुतस्कन्ध का पर्युषण कल्प जिसको आज कल्पसूत्र के नाम से कहते हैं, दोनों को यदि एक ही नाम से कहा जाय तो ग्रंश का सही परिचय प्राप्त नहीं होगा। अत: आवश्यकता हुई दोनों में विशेषण देने की। कल्पसूत्र के अन्तिम भाग समाचारी में भी कुछ कल्पाकल्प का भेद दिखाने हेतु उल्लेख किया है और इसमें उसी का विस्तृत विचार है--- संभव है इसी दृष्टिकोण को लेकर मध्यकाल के आचार्यों ने इसका नाम बृहत्कल्प रखा हो। सामग्री के अभाव में और समय की कमी से यहां अभी यह निर्णय नहीं कर सकते हैं कि बृहत्कल्प नाम की प्रसिद्धि कब से हुई। कर्ता एवं उद्देश्य प्राप्त सामग्री के अनुसार बृहत्कल्प सूत्र के कर्ता श्रुतकेवली भद्रबाहु माने गये हैं। आचार्य मलयगिरि कहते हैं कि- अथ क: सूत्रमकार्षीत? को वा नियुक्ति? को वा भाष्यम? इति, उच्यते- इह पूर्वेषु यद् नवमं प्रत्याख्यानं नामक पूर्व तस्य यत् तृतीयमाचाराख्यं वस्तु तस्मिन् विशतितमे प्राभृते मूलगुपोषनरगुणेषु चापराधेिषु दशविधमलोचनादिकं प्रायश्चिनपवर्णितम्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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