Book Title: Bruhat Katha kosha
Author(s): Harishen Acharya, 
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 558
________________ CORRIGENDA Story Story 28 Verse 13c 31a 326 49d Verse 21d 24b 556 13d 12c 20a 14a 14d. 23a 57c 676 780 860 340 Read 'ऽग्रहीत् कुन्तेषुच्छु प्रीतिमाप्नुवन् ऽग्रहीत् ऽङ्ग तरों 'मत्युद्धं प्रहिणोति श्रावकाणां भव्योपपदः रेवतीश्राविका दधि सुन्दरम् छर्दि ब "मत्युद्धं सोपसर्गों बभाणैतान् निःसृत्य 36 456 19d 26d 126 9d 776 1186 Road क्षेपाद् विलोक्यैतौ °क्षालनादिकाम् महानसे छजम् जगादैनं विभो मयाऽऽहृता मतिधर्म यथाविधि वरवर्मना स्तुरङ्गेण जय श्री वत्सलाम् नराधिप द्वारां पञ्च श निर्लक्षण त्व राजेन शिरोजा पापर्द्धि ते अपराहे प्राप्तः सुताऽनयोः अपराहे प्राप 15a 300 300 34b 16 8a प्रासासि °श्चलना लोकः सल्लोक यशो जगादैती 80 146 22d 33aa 360 37c 77d 22a 29d 636 666 94a 132a 25d ते न खल F.n.6 86 10c 610 .79c 172c 178d 13a 14c 25d 21c 47 दृष्ट्वोप 900 53 200 1320 33c 1206 190 29c 4ld 16c 38d विष्णू महा दत्त्वा स्वस्वामि निःसृत्य °ऽग्रही ध्यायं तामा पञ्च स्तू लोक कृ ध्यातं उपरिष्टा विद्या सि पञ्चषाणि शष्पाणि समार्पयत् प्रहिणोति 'विग्रहम् चतुरङ्गेण सिंहान्धी विनीतावि प्रीतो दिवमुवजाम् तीर्थानि 506 570 620 700 1296 180c 219a 262d 296a भूपो मन्दर प्राप्तास्तथा साधुस्तदानीं पथा गहिलकः भुज्यते मार्गागमन वनितार्थितः जगामायं श्रेणिक द्भवतः तत्प्रभावेण कृत्रिमा सत्यमधुना स विस्मितः ग्रहीष्यति 20c 52d 5d 27d 16 16c 54d 60c 10a 70c 88d 2476 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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