Book Title: Bramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Author(s): Vandanadevi
Publisher: Ilahabad University

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ अडिग बना रहा। इसका कारण यह है कि आधार दृढ़ एवं निर्दोष ज्ञान भी मीमांसा पर टिका हुआ है। इसकी ज्ञान मीमांसा का मूल यह है कि आत्म-तत्त्व चेतन-स्वरूप है और इसके प्रमाण की भी कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह स्वयंसिद्ध एवं स्वप्रकाश स्वरूप है। शङ्कराचार्य के इन असंदिग्ध तर्को एवं विचारो के समक्ष समस्त दार्शनिक स्वयमेव नतमस्तक हो जाते है। यही कारण है कि शङ्कर का दर्शन दर्शनो का शिरोमणि कहा जाता है। उनके विषय मे यह कथन सर्व प्रसिद्ध है "तावद् गर्जन्ति शास्त्राणि जम्बुकाः विपिने यथा । न गर्जन्ति महाशक्तिर्यावद् वेदान्त केसरी" || प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में कुल छ: अध्याय है। प्रथम अध्याय में दर्शन का सामान्य परिचय प्रस्तुत किया गया है जिसके अर्न्तगत दर्शन की परिभाषा, उत्पत्ति, जीवन और दर्शन, दर्शन एवं धर्म, विषय, प्रयोजन, कालविभाजन, भारतीय दर्शन की विशेषताए तथा भारतीय दर्शन की मुख्य विधाओं का वर्णन किया गया है। 'दर्शन' का परिचय जाने बिना शाङ्कर वेदान्त को जानना अति दुरूह है। दर्शन आत्म साक्षात्कार का परम साधन है। द्वितीय-अध्याय में "श्रौत्र दर्शन एवं गीता" का वर्णन किया गया है। इसका वर्णन करने के पीछे मुख्य उददेश्य यह है कि वैदिक संहिताओं और आरण्यकों, उपनिषदों तथा गीता के अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि उसमें दार्शनिक तत्त्व प्रर्याप्त मात्रा में मौजूद थे। तृतीय अध्याय शंकर पूर्व वेदान्त है। यह विषय समग्रता कि दृष्टि से तीन खण्डों में विभक्त है। खण्ड-(क) में योग वाशिष्ठ का वर्णन है जिसमें यह दिखलाने का प्रयास किया है। कि शङ्कर का अद्वैत वेदान्त शंकर से पूर्व योग वाशिष्ठ में भी विद्यमान था। खण्ड-(ख) में शंकर पूर्ववर्ती अद्वैत वेदान्त के प्रर्वतक आचार्य और उनका अव्यवस्थित इतिहास

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 388