Book Title: Bhuvansundari Kathayam Varnitani Samudrik Shastra Kathit Lakshanani Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ अनुसंधान - १६• 29 निस्सो अइ थूलफिओ मंडूयफिओ य होइ धणवंतो । सिंहकडी नरनाहो करहकडी य सदारिद्द ॥७॥ समजठर धणवंता हस्सवक्केहिं भोयपरिहीणा । समकुच्छी भोयड्डा उन्नयकुच्छी य नरनाहो ॥८॥ जे विसमकुच्छिपुरिसा ते किर मायाविणो विणिद्दिट्ठा । सप्पोदर दरिद्दा हवंति बहुभक्खगा तहय ॥९॥ परिमंडलुन्नएणं गंभीरेणं च सुत्थिया होंति । तुच्छ - अदिस्स- अणुन्ननाहीवलएण पुण दुहिया ॥१०॥ विसमबलिणो मणुस्सा अगम्मगामी य हुति पावा य । समबलिणो पुण सुहिणो परदारपरम्मुहा होंति ॥११॥ पासेहिं मउय-मंसल--पर्याक्खिणावत्तरोमजुत्तेहिं । हुति नरामरवणो विवरीएहिं च बहुदुक्खा ॥ १२ ॥ आपीयउवचिएहिं मज्झनिमग्गेहिं हुंति नरनाहा । दीहिं चुच्चुएहिं विसमेहिं य हुंति धणहीणा ॥१३॥ हिययं समुन्नयं मंसलं च पिहुलं च होइ रायाण 1 विसमहियया दरिद्दा सत्थनिवाएहिं य मरंति ||१४|| कंबुग्गीवो राया महिसग्गीवो य होइ रणसुहडो । लंबग्गीवो य नरो बहुभक्खी होइ पयईए || १५ || पिटुम भग्गमरोमं पुहईनाहाण होइ वित्रेयं । अस्सेयण- पीणु-नय- सुगंधकक्खा य धन्ना ॥१६॥ विउले अव्वुच्छित्रे सुसिलिट्टे अंसए नरिंदस्स । निम्मंसरोमनिचिए विसमे उण इयरलोयस्स ||१७|| करिकरसरिसे वट्टे आजाणुपलंबिरे य पीणे य । रायाणं चिय बाहू इयराणं रोमसे हस्से ||१८|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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