Book Title: Bhuvansundari Kathayam Varnitani Samudrik Shastra Kathit Lakshanani
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भुवनसुंदरीकथायां वर्णितानि सामुद्रिकशास्त्रकथितलक्षणानि ॥ . सं. विजयशीलचन्द्रसूरि वि.सं. ९७५मां नागेन्द्रकुलना आचार्य विजयसिंहसूरिए ८९११ गाथाप्रमाण, प्राकृतभाषाबद्ध भुवणसुंदरीका नामे अद्भुत कथाग्रन्थनी रचना करी छे. अद्यावधि अप्रगट आ ग्रन्थ हाल मुद्रणाधीन छे. आ कथाग्रंथमा एक स्थळे कर्ताए मनुष्यनां सामुद्रिक देहलक्षणोनुं रोचक-शास्त्रीय वर्णन कयुं छे, ते अहीं आपवामां आवे छे. संस्कृत भाषामां तो आ विषयना ग्रन्थो होय छे. प्राकृतमां आ विषयर्नु भाग्ये ज खेडाण थयुं छे, तेथी आ संदर्भ रसिकजनोने रसप्रद बनशे तेवी आशाथी अत्रे प्रकाशित करवामां आवे छे. अस्सेयकोमलतले कमलोदराभे, लीणंगुलीरुइरतंबनहेसु पण्ही । उण्हे सिराविरहिए य निगूढगुप्फे, कुम्मुन्नए य चरणे वसुहाहिवस्स ॥१॥ परिविरलसण्हरोमार्हि वट्टजंघाहिं हुंति नरनाहा । करिकरसमाणऊरू मंसल-समजाणुणो पुरिसा ॥२॥ रोमेगेगं कूवए पत्थिवाणं, दो दो नेए बंभणाणं बुहेहिं । ते नायव्वे दुत्थियाणं बहूणि, रोमा एवं पूइया निंदिया य ॥३॥ तुच्छे होइ धणी अवच्चरहिओ जो थूललिंगो नरो • वाम वंकगए सुयत्थरहिओ अन्नत्थ पुत्तेसरो । दारिद्दी अइलंबलिंगकहिओ लिंगे सिरासंगए तुच्छावच्च-धणो हवेज्ज सुहिओ गंठिम्मि थूले नरे ॥४॥ कुसुमसमसुक्कगंधा विनेया पत्थिवा न संदेहो । महुगंधा य धणड्डा मच्छदुगंधा य बहुदुक्खा ॥५॥ तणुसुक्को बहुधूओ बहुसुक्को बहुसुओ नरो होइ । बहुसुरओ दीहाऊ इयरो तुच्छाउओ होइ ॥६॥ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १६• 29 निस्सो अइ थूलफिओ मंडूयफिओ य होइ धणवंतो । सिंहकडी नरनाहो करहकडी य सदारिद्द ॥७॥ समजठर धणवंता हस्सवक्केहिं भोयपरिहीणा । समकुच्छी भोयड्डा उन्नयकुच्छी य नरनाहो ॥८॥ जे विसमकुच्छिपुरिसा ते किर मायाविणो विणिद्दिट्ठा । सप्पोदर दरिद्दा हवंति बहुभक्खगा तहय ॥९॥ परिमंडलुन्नएणं गंभीरेणं च सुत्थिया होंति । तुच्छ - अदिस्स- अणुन्ननाहीवलएण पुण दुहिया ॥१०॥ विसमबलिणो मणुस्सा अगम्मगामी य हुति पावा य । समबलिणो पुण सुहिणो परदारपरम्मुहा होंति ॥११॥ पासेहिं मउय-मंसल--पर्याक्खिणावत्तरोमजुत्तेहिं । हुति नरामरवणो विवरीएहिं च बहुदुक्खा ॥ १२ ॥ आपीयउवचिएहिं मज्झनिमग्गेहिं हुंति नरनाहा । दीहिं चुच्चुएहिं विसमेहिं य हुंति धणहीणा ॥१३॥ हिययं समुन्नयं मंसलं च पिहुलं च होइ रायाण 1 विसमहियया दरिद्दा सत्थनिवाएहिं य मरंति ||१४|| कंबुग्गीवो राया महिसग्गीवो य होइ रणसुहडो । लंबग्गीवो य नरो बहुभक्खी होइ पयईए || १५ || पिटुम भग्गमरोमं पुहईनाहाण होइ वित्रेयं । अस्सेयण- पीणु-नय- सुगंधकक्खा य धन्ना ॥१६॥ विउले अव्वुच्छित्रे सुसिलिट्टे अंसए नरिंदस्स । निम्मंसरोमनिचिए विसमे उण इयरलोयस्स ||१७|| करिकरसरिसे वट्टे आजाणुपलंबिरे य पीणे य । रायाणं चिय बाहू इयराणं रोमसे हस्से ||१८|| Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 30 गूढमणिबंधसुदिढा सम्मं सुसिलिट्ठसंधिसंजुत्ता । हत्था नरनाहाणं विवरीया होंति इयराण ।।१९।। हत्थंगुलिणो सरला चिराउसाणं हवंति सुकुमारा । सण्हा मेहावीणं थूला परक्कम्मकारीण ॥२०॥ हुति नहा दरसोणा अपुप्फिया अवणयंग्गभागा य । रायाणं इयरेसिं विवरीया होंति विन्नेया ।।२१॥ अइकिसदीहं चिबुयं अधणाणं मंसलं च सुपमाणं । रायाणं विनेयं अणुब्भडं संगयावयवं ॥२२॥ अहरेहिं अवक्केहिं बिंबाकारेहि हुँति रायाणो । फुडिय-विवनविखंडिय-रुक्खेहिं य हुंति धणहीणा ॥२३॥ निद्धा पमाणदीहा तिक्खग्गा हुंति सुंदरा दसणा । जीहा रत्ता दीहा लण्हा सरिसा य रायाण ॥२४॥ सोमं समुज्जलं अमलिणं च चंदोवमं नरिंदाणं । विवरीयमधन्नाणं होइ मुहं लक्खणविहीणं ॥२५।। निम्मंस-आयएहिं या रोमस-विउलेहिं हुंति कन्नेहिं । रायाणो ससिरेहिं हुस्सेहिं य हुंति पावनरा ॥२६॥ संपुन-समंसल-कूचरहियगंडेहिं नरवई हुंति । सरला य सण्हविवरा समुन्नया नासिया धन्ना ॥२७॥ पउमदलदीहरेहि रत्तंतेहिं च हुँति रायाणो । नयणेहि पिंगलेहिं मज्जारसमेहिं कूरमणा ॥२८॥ अद्धिदुसमनिडाला रायाणो हुँति सयलमहिवलए । धणहीणा विनेया पुरिसा जे विसमभालयला ।।२९।। च्छत्तागारसिरा जे रायाणो हुंति नत्थि संदेहो । आकुंचिय-घण-निद्धा अप्फुडिया सुंदरा केसा ॥३०॥ ||३० Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 31 एयं संखेवेणं सामुद्दयसत्थलक्खणाणुगयं / कहियं कुमार ! तुह कोउएण, अन्नं पि निसुणेसु // 31 // तिन्नि गहीराणि सया विउलाइ य हुति तित्रि वत्ताई / चत्तारि य रहस्साइं पंच य सुहुमाइं दीहाई // 32 // छच्चुन्नयाई सत्त य आरत्ताइं च संपयमिमस्स | गाहादुगस्स कमसो, विवरणमेयं निसामेह / / 33 / / नाभी-सर-सत्ताई य गंभीराइं च तिन्नि धन्नाई / वयणं उरं निडालं तिन्नि य विउलाई संसंति // 34 / / पिटुं लिंगं जंघं गीवा चत्तारि होंति हुस्साई / केस-दसणंगुली-पव्व-नहंतया पंच सुहुमाणि // 35 / / हणु-नयण-थणंतर-बाहू-नासिया होंति पंच दीहाई / रायाणं चिय बहुसो न उणो सामन्नपुरिसाण // 36 / / हिययं कक्खा-नह-नासिया य वयणं च कंधराबंधो / इय हुंति उन्नयाई कुमर ! पसत्थाई छच्चेव // 37 / / नयणंत-पाय-कर-जीह-नहा-हरोट्ठा तालू य हुति सुहया इह सत्तरत्ता / एयाणि जस्स नरनाह ! हवंति अंगे सल्लक्खणाणि पुरिसस्स स चक्कवट्टी // 38 // अट्ठसयं छनउई चउरासीइ य अंगुलपमाणं / उत्तम मज्झिम-हीणाण देहपमाणं मणुस्साण // 39 //