Book Title: Bhinmal Jain Itihas ke Prushto par
Author(s): Ghevarchand Manekchand
Publisher: Z_Arya_Kalyan_Gautam_Smruti_Granth_012034.pdf

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Page 5
________________ दिया था । दक्षिण में गुजरात के प्रदेश भडोच तक यह राज्य फैला हुआ था। भाणराजा के संसार पक्षके काका श्रीमल्ल जो साधु हो गये थे और जिनका नाम सोमप्रभ प्राचार्य था, विहार करते-करते वि. सं. ७७५ की साल में भीनभाल पधारे थे। उन्होंने भीनमाल के राज्य-परिवार को उपदेश देकर उनके पारिवारिक क्लेश को दूर किया। श्री भाणराजा की विनति पर प्राचार्य जी ने भीनमाल में चातुर्मास किया। भाणराजा ने शत्रुजय एवं गिरनारकी संघसहित यात्रा की। उन्होंने अपने कुलगुरु शंखेश्वरगच्छ के प्राचार्य उदयप्रभसरिको निमंत्रण देकर संघके साथ यात्रा करने को बुलाये । भारणराजा की यह संघयात्रा बड़ी विशाल थी। पौराणिक कथानुसार भारणराजा को उक्त संघयात्रा में, सात हजार रथ, सवालाख घोड़े, दस हजार हाथी, सात हजार पालकी, पचीस हजार ऊंट एवं ग्यारह हजार बैलगाड़ियां थीं। भाणराजा के संघवी पदके तिलक करने के बारे में एक विवाद उत्पन्न हुआ। जिस पर भिन्न-भिन्न गच्छ के प्राचार्यों को एकत्रित कर इस विषय पर विचार . किया । विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय किया गया कि संघवीपदका तिलक कुलगुरुको ही करने का अधिकार है। इसके बाद श्री उदयप्रभसरिजी ने भाणराजा को संघवी पदका तिलक किया । भाण राजा ने उक्त संघमें अठारह करोड़ सोनामोहरोंका खर्च किया। भविष्य में भी ऐसे विषयों पर कोई विवाद उत्पन्न न हो इसलिये सभी गच्छों के प्राचार्यों ने मिलकर यह मर्यादा बांधी कि जो प्राचार्य जिस श्रावक को प्रतिबोध देकर जैन बनावे वह साधु उस श्रावक का कुलगुरु माना जायगा । कुलगुरु अपनी बही में अपने श्रावकका नाम दर्ज करेगा एवं भविष्य में उस श्रावकके द्वारा कोई प्रतिष्ठा आदि कार्य उसके कुलगुरु के द्वारा ही संपन्न कराया जायगा । यदि वे कुलगुरु कहीं दूर विराजमान हों तो उन्हें निमंत्रण देकर बुलाना आवश्यक है। यदि किसी कारणवश कुलगुरु न पा सकें तो उनकी प्राज्ञा लेकर अन्य प्राचार्य से ये कार्य संपन्न कराये जा सकते हैं । उसके बाद जो प्राचार्य जिन्होंने उपरोक्त कार्य संपन्न कराया हो वे उस श्रावक के कुलगुरु माने जायेंगे। इस व्यवहारको लिपिबद्ध किया गया एवं उस पर विभिन्न गच्छ के प्राचार्यों ने एवं श्रावकों ने हस्ताक्षर किये । जो निम्नप्रकार हैं: स गच्छ का नाम आचार्य का नाम नागेंद्रगच्छ श्री सोमप्रभाचार्य ब्राह्मणगच्छ श्री जिज्जगसूरि उपकेशगच्छ श्री सिद्धसूरि निवृत्तिगच्छ श्री महेंद्रसूरि विद्याधरगच्छ श्री हरियानंदसूरि सांकेरगच्छ श्री ईश्वरसूरि शंखेश्वरगच्छ श्री उदयप्रभसूरि इसके अतिरिक्त श्री आहरसूरि, आर्द्र सूरि, जिनराजसूरि, सोमराजसूरि, राजहंससूरि, गुणराजसूरि, पूर्णभद्रसूरि, हंसतिलकसूरि, प्रभारत्नसूरि, रंगराजसूरि, देवरंगसूरि, देवानंदसूरि, महेश्वरसूरि, ब्रह्मसूरि, विनोदसूरि, कर्म राजसूरि, तिलकसूरि, जयसिंहसूरि, विजयसिंहसूरि, नरसिंगसूरि, भीमराजसूरि, जयतिलकसूरि, चंदहससूरि, वीरसिंहसूरि, रामप्रभसूरि, श्री कर्णसूरि, श्री विजयचंदसूरि एवं अमृतसूरि ने भी हस्ताक्षर किये । उक्त लिखित पर श्री भागराजा, श्रीमाली जोगा, राजपूर्ण एवं श्री कर्ण आदि श्रावकों ने भी हस्ताक्षर किये। એ શ્રઆર્ય ક યાણૉતHસ્મૃતિ ગ્રંથ રચી Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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