Book Title: Bhinmal Jain Itihas ke Prushto par
Author(s): Ghevarchand Manekchand
Publisher: Z_Arya_Kalyan_Gautam_Smruti_Granth_012034.pdf
View full book text
________________
M
mmmmmmmmmmmmIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIImmmmmmmmmmmmm[५१]
बाल
श्रीरत्नमालं किल पुष्पमालं, श्रीमालमाहुश्च ततो विशालम् । जीयाद् युगे नाम पृथग् दधानं, श्रीभिन्नमालं नगरं प्रधानम् ॥ २ ॥ ओएसवंशे सुखसन्निवासे प्राभाभिधः साधुसमो बभासे । भाति स्म तज्ज्ञो भुवि सादराजस्तदंगजः श्रीघुडसी रराज ॥ ३ ॥ तस्यास्ति वाछूर्दयिता प्रशस्ता, कोऽलं गुणान् वर्णयितु न यस्याः । याऽजीजनत् पुत्रमणि प्रधानम्, लोलाभिधानं सुरगोसमानम् ॥ ४॥ जायाद्वयी तस्य गुणौघखानी, चंद्राउलीश्चान्यतमाऽथ जानी। विश्वंभरायां विलसच्चरित्राः सुता अमी पंच तयोः पवित्राः ॥५॥ वज्रांगदाभिध-हेमराज-श्चाम्पाभिधानोऽप्यथ नेमराजः । सुता च झांभूरपरा च साम्पूस्तथा तृतीया प्रतिभाति पातूः ॥ ६ ॥ इत्यादि निःशेषपरिच्छदेन, परिवृतेन प्रणतोत्तमेन । शुद्धक्रियापालन पेशलेन, श्रीलोलसुश्रावकनायकेन ॥ ७॥ सुवर्णदण्डप्रविराजमाना,
विचित्ररूपावलिनिःसमाना । श्री कल्पसूत्रस्य च पुस्तिकेयं कृशानुषट्पंच धरामितेऽब्दे (१५६३) ॥ ८॥ संलेखिता श्रीयुतवाचकेन्द्र-श्रीभानुमेर्वाह्वयसंयतानाम् । विवेकतः शेखरनामधेय-सद् वाचकानामुपकारिता च ॥९॥ न जातु जाड्यादिधरा भवंति, न ते जना दुर्गतिमाप्नुवन्ति । वैराग्यरंगं प्रथयत्यमोघं, ये लेखयन्तीह जिनागमोघम् ॥ १०॥
श्रीजिनशासनं जीयाद जीयाच्च श्रीजिनागमः ।
तल्लेखकश्च जीयासु-र्जीयासुर्भुवि वाचकाः ।। __ अर्थात् पूर्वसमय में जो रत्नमाल, पुष्पमाल और श्रीमाल नगर के भिन्न भिन्न नाम से विख्यात था और जो आज भिन्नमाल के नामसे प्रसिद्ध है, उस नगरी में प्रोसवाल वंश के प्राभा नामक श्रावक रहते थे। प्राभा का पुत्र सादराज था और सादराज का पुत्र घुडसी था। घुडसी की धर्मपत्नी का नाम वाछु था। घुडसी के पुत्र का नाम लोला था। लोला की दो पत्नियां थीं-चंदाउलि और जानी। लोला श्रावक के वज्रांग, दूदा, हेमराज, चम्पा और नेमराज नाम के पांच पुत्र थे तथा झांझ, सांपू और पातू नामक तीन पुत्रियां थीं।
विधिपक्ष (अंचलगच्छ) के गणनायक श्री भावसागरसूरि के धर्मसाम्राज्य में वाच केन्द्र (उपाध्याय) श्री भानुमेरु के उपदेश से तथा वाचक विवेकशेखर के उपयोग के लिये इस लोला श्रावक ने समस्त परिवार के साथ वि. सं. १५६३ में चित्रसंयुक्त इस पुस्तक को सुवर्णवर्णाक्षरों में लिखवाया।
भीनमाल में लिखी हई यह हस्तप्रति राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान से मिली है। उसका क्रमांक ५३५४ है। पत्र संख्या १३६ है। माप २८.५४११.३ सेन्टिमीटर है। मूलपाठ की पंक्ति ७ और अक्षर २६
ચમ શ્રી આર્ય કયાણગૌતમસ્મૃતિગ્રંથ
)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org