Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 15
________________ // 3 // | सोऽपूर्वाभ्युदयः श्रीमान्नन्द्याच्चन्द्रप्रभः सूरिः॥२५॥ चैत्रवद् धनपालो न कस्य ? राज्यप्रियः प्रियः। सत्कर्णाभरणा यस्माजज्ञे | तिलकमञ्जरी // 26 // जयन्तु सूरयोऽन्येऽपि येषां वागब्रह्मवैभवम् / ग्रन्थसृष्टौ महाकाव्यसर्गेषु च नवं नवम् // 27 // वन्द्यास्ते राम| वत् सन्तो यैर्व्यस्तपरदूषणैः / क्रियते विबुधैः सेव्या निष्कलंका कृतिः कवेः // 28 // नरोत्तमः स वैकुंठो परास्तारातिः शंकरः / धाता पद्मासनस्तत्स्यात्समानः केन सज्जनः 1 // 29 // वृत्तरम्येण पीयूषवर्षिणा सत्कलावता। नेन्दुनापि समः साधुः कालकूटसजन्मना / / // 30 // अनेकपस्य भद्रस्य गर्जतश्च स्थिरैः पदैः / साधोः कुर्यात्सुवंशस्य किं ? श्वेव पिशुनो भषन् // 31 // कवेर्यशःशरीरे यः काव्ये दोषं कुदृष्टिजम् / हन्ति परहितः क्षुद्रः, स मपीबिंदुवत्कथम् ? // 32 // परस्यासाधुशब्दं यो द्विधादाय निजं पुनः / साधुशब्दं द्विधा| दत्ते स दुर्वाच्यः कथं ? जनः // 33 // विदुषां सत्कविग्राममार्गे प्रस्थितिकारिणाम् / कुर्वन् वामस्वरैरर्थलाभं शस्यः खरः खलः // 34 // रसोचितपदन्यासे प्रबंधे खलखेलितम् / व्यर्थ वश्यात्मनीव स्यात् कामि( नीदृग्बाणवत्) // 35 / / सुकुमारपदास्फारवृत्ता विजयतां परम् / रीतिः कविनां वैदर्भी न लसद्विग्रहाश्रया // 36 // शुक्लपक्ष इवारोहत् सुधाकरकलः शुभैः। सत्कविः स्यात्तदन्यस्तु कृष्णपक्ष इवाशुभैः // 37 // शुद्धा कर्पूग्वत्सद्भिरन्तर्भावेन गृह्यते / मृगनाभिरिवाशुद्धाऽलीकेन तु कवेः कृतिः // 38 // प्रतिमेव (जिनेन्द्राणां) प्रतिष्ठामेति सूरिभिः। विज्ञैस्तेजः पुनर्भावव्यंजितं रंगनायकैः // 39 // शुद्धा प्रबुद्धा सामोदा नंदतात्सुमनस्ततिः। या सभाभूषणं * माला वृत्तिश्चित्रं तु संमुखी // 40 // रसं विपच्य रुच्यं ये वाक्ये चूतेव तन्वते / प्रवर्द्धन्तां चिरं श्रोतृजना ग्रीष्मदिनाश्च ते // 4 // सभामलंकरोत्येकश्चिद्रूपोऽलक्षितः परैः। (श्रोतृसमाजव्योम)स्थः कलापात्र(विधु)मिव // 42 // परिश्रमविदो वाक्य रज्यन्तेऽनर्थकैरपि / वि(नेशाः) किं ? न तुष्यन्ति सकलैर्जीर्णवाससः / / 43 // येषां प्रसत्तिर्युत्पत्तिरोजःकान्तिसमाधयः। श्रोतारः कवितारश्च युज्ये // 3 //

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