Book Title: Bhavbhavna Prakaranam
Author(s): Hemchandracharya, Vairagyarativijay
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 9
________________ की उदारता से एक प्राचीन कृति प्रकाश में आ रही है अतः उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। संस्था में पाण्डुलिपि का क्रमांक-१८८७-९१/१२२६-११९ है। इस पाण्डुलिपि के २१ पत्र है। पत्र की लंबाई एवं चौडाई है। प्रत्येक पत्र पर १९ पंक्तियाँ है एवं प्रत्येक पंक्ति में ६०वर्ण हैं। यह पाण्डुलिपि वि.सं. १५२५ वर्ष में वैशाख शुदि १५ मंगलवार के दिन सम्भवतः बडोदा शहर में लिखी गई है। इस पाण्डुलिपि के अक्षरमरोड विशिष्ट है। पाण्डुलिपि १६वी शताब्दी में कागज पर लिखी गई है फिर भी इसकी लेखनशैली पर ताडपत्रीय लेखनशैली का गहरा असर दिखता है। विशेषतः संयुक्ताक्षर के मरोड अध्ययन करने योग्य है। यहां दिखाई देनेवाले अक्षरमरोड अन्यत्र, खास कर कागज की पाण्डुलिपि में, उपलब्ध नहीं होते। लिपिशास्त्र के प्रारम्भिक अभ्यास हेतु यह पाण्डुलिपि उपयोगी बन सकती है। भाषा की दृष्टि से यह पाण्डुलिपि शुद्ध है। इसके लेखक (स्क्राइब) संस्कृत भाषा के और विषय के अच्छे जानकार लगते है। रचनाशैली अवचूरि के रचनाकार अज्ञात है। रचनाशैली द्वारा अवचूरि की रचना का मुख्य आशय भवभावना के विषय को संक्षेप में एवं सरलता से प्रस्तुत करना प्रतीत होता है। स्वोपज्ञ वृत्ति में सभी दृष्टान्त पद्यमय प्राकृत भाषा में विस्तार से प्रस्तुत किये है। अवचूरि में उन्हीं दृष्टान्तों को सरल और गद्य संस्कृत में प्रस्तुत किया है। अतः प्राकृत से अनभिज्ञ भी अवचूरि की सहायता लेकर भवभावना का अवगाहन कर सकते हैं। गाथा की व्याख्या करते समय अवचूरिकार ने मूलवृत्तिकार का ही अनुसरण किया है। अवचूरि का ग्रन्थमान १३५० श्लोक है। संपादनपद्धति अवचूरि की एक ही पाण्डुलिपि है और अवचूरि मूलवृत्ति का ही अनुसरण करती है, अतः संदिग्ध पाठों का निर्णय मूलवृत्ति के आधार पर किया है। क्वचित् पतित पाठ की पूर्ति मूलवृत्ति के आधार पर की है। सम्पादन हेतु सहायक सामग्री के रूप में १ देखिये लेखक प्रशस्ति-संवत् १५२५ वर्षे वैशाख शुदि १५ भूमे।। अद्येह बाडोद्राग्रामे लिखि। प्रशस्ति में बाडोद्रा को ग्राम कहा है, अतः वह अन्य भी हो सकता है।

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