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तीन मुद्रित प्रताकार आवृत्तियों का उपयोग किया है।
१) इसे मु. अ. संज्ञा दी है।
२) इसे मु.ब. संज्ञा दी है।
३) इसे मु.क. संज्ञा दी है।
प्रथम दो के सम्पादक पूज्य आचार्यदेव श्री आनन्दसागरसू.म.सा. है। मु.ब.में मूल एवं संस्कृत छाया है। मु. अ.प्रत अनेक परिशिष्टों से समृद्ध है। तृतीय मुद्रित के संशोधक पू.आ.श्री विजय मुक्तिचंद्रसू.म.सा. और पू. आ. श्री विजय मुनिचंद्रसू.म.सा. है। यह आवृत्ति पू. आगम प्रभाकर मुनि प्रवर श्री पुण्यविजयजी म.सा. के द्वारा संशोधित जेसलमेर की ताडपत्रीय प्रत के आधार पर तैयार की गई प्रेसकापी से तैयार की गई है। इन तीनों आवृत्तियों की उपयुक्त सामग्री का यहां उपयोग किया है। इस के लिये पूज्य आचार्यदेवों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। मूल गाथाओं के संपादन के लिये हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञान भंडार, पाटण की ताडपत्रीय प्रत (क्र. पातासंपा ६७ - २) का उपयोग किया है।
प्रस्तुत सम्पादन भवभावना के भावार्थ को समझने में सहायक होगा ऐसे विश्वास के साथ विद्वत्पुरुषों को प्रार्थना करते हैं कि सम्पादन में रह गई त्रुटियों को सुधाकर हमें सूचित करने का अनुग्रह करें।
सम्पादकगण