Book Title: Bhattaraka Kanakkushal aur Kunvar kushal Author(s): Agarchand Nahta Publisher: Z_Vijay_Vallabh_suri_Smarak_Granth_012060.pdf View full book textPage 9
________________ ७३ भट्टारक कनककुशल और कुँअरकुशल महावीर राजनिमुकुट अतुलबली अरिहंत । वैसे ही चौबीस ए, भये अापु भगवंत ॥ २४ ॥ सेवत जाहि मुनीश सुर प्रभुता को नाहिं पारु । जय जय श्री जिनराज जय, साशन को सिंगारु ॥ २५ ॥ तिनि तें पंचपन में तखत, सिरीपूजि सिरताजु । हेमविमल सूरीश्वर, जागे धरम जिहाजु ॥ २६ ॥ पर उपकारी परमगुरु बेतमाह शुभ बेस । अबू सैद सुलतान उनि प्रतिबोधित उपदेस ।। २७ ।। भये कुशल माणिक्यभुव पंडित तिनिके पाट । तैसे ही तिनिके तखत, सहज कुशल शुभवाट ।। २८ ।। जाको महिमा जगतमें को करि सकै सराहि! तज्यो जेजिया ता बचन, साहिब बब्बर साहि ॥ २१ ॥ लाइक पुनि लछमीकुशल पदधर तिनिके पाट । देवकुशल तिनिके तखत, साधुनि कौ सम्राट ॥ ३०॥ तिनिके पट्टांबर नरनि, धीर कुशल भये धीरु । कियो दूर कलिकलुषतम, बडे तपोबल वीरु ॥ ३१ ॥ गाजे तिनिके गुण कुशल अचल पट्टधर इन्द्र । शील सत्य तप जप सहित चतुर चातुरी चन्द्र ॥ ३२॥ वखत बली तिनिके तखत, भये प्रतापगुण भानु । श्री प्रताप कुशल सुगुह, साहि निलय सनमानु ॥ ३३ ।। जाकै संपति जनम तें सदा साथ कै साथ । बचनसिद्धि परसिद्धि सौं भई सिद्धि सब हाथ ।। ३४ ॥ श्रेक समै औरंग सों, काहू करी पुकार । कही बात कछु सिद्धि की, सुनी साहि सिरदार ।। ३५ ॥ पासि बुलाए पालखी, फौज भेज फरमान । जबै जुरी चारों निजरि त भयो गलतान ॥ ३६ ॥ पढ़े हिन्दवी पारसी, गुरुजु अकलि गुराब । पूछे दिल्लीपति प्रसन जिनके दये जुबाब ।। ३७ ।। और इष्ट बलिकर कही कितीक मन की बातु । प्रेम निजरि आलिमपना बसु को किय वरसातु ॥ ३८॥ दये गाम दशपंच पै लिये न लालच धारि।। दे पालख अमोल दुति, विदा किये तिहि वारि ॥३६ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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