Book Title: Bhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Author(s): Rajendra Jain
Publisher: Digambar Jain Trishala Mahila Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ कोलम्बस आदि अंग्रेजों ने इसको इन्डिया नाम दिया, मुसलमानों ने सिन्धुस्थान के उच्चारण के विपर्यास के कारण हिन्दुस्थान कहा जैसे पाकिस्थानं, तुर्किस्थान आदि। यह यहां तीसरेकाल के अन्त से अभी तक के नामकरण का संक्षिप्त इतिहास है। सिन्धु देश में भगवान महावीर की ननिहाल थी। चेटक (चेतक) राजा व सुभद्रा रानी उनके नानानानी थे। जिनका प्रभाव पूरे भारत में व्याप्त था जिन की सात पुत्रियां थीं। एक त्रिशला थी जो कुमार महावीर की माता होने से जगज्जननी/जगदम्बा थीं यहां चेलना कुमारी कुशाग्रपुर/राजग्रह में राजा श्रेणिक विम्वसार की पटरानी थीं कौशाम्बी, उज्जैन, पाटलीपुत्र (पटना) विदेह देश आदि भी चेटक महाराजा के प्रभाव में थे। ज्येष्टा व सात्यकि राजा से ग्यारहवें महादेव स्थाणु रुद्र उत्पन्न हुए जो भावलिंगी महामुनि ऋद्धीधारी होकर सामान्य स्थिति को प्राप्त हुए जिन्होने उज्जैनी मसान में स्थित अपने भाई महावीर की परीक्षा ली और प्रसन्न होकर अतिवीर यह संज्ञा दी। इस तरह सिन्धु देशवासी चेटक का प्रभाव विख्यात सभी राजघरानों में था। सिन्धुघाटी की सभ्यता भी जैन भारतीय संस्कृति की परिचायक है। सर्व प्राचीन जैन वेदों में वर्णित सिन्धु नदी भी प्रसिद्ध नदी पाकस्थान आदि के अन्दर बही है जहां इतिहासज्ञों द्वारा तक्षशिक्षा की स्थिति स्वीकारी गई है। जिसके तटों से अनेक दिगम्बर जैन ऋषिगण शिवत्व को प्राप्त हुए। उन सब कारणों से भी लोग भरत क्षेत्र के कुछ मुख्य भाग को भारत से सिन्धु स्थान कहने लगे। यह नाम जैनों के महत्व का दर्शायक है। कोई कुछ भी कहे यहां के पुरावशेषयोग के सबल प्रमाण है। योगियों के फलकों से योग परम्परा की पुष्टि होती है। जैनों में योगियों की दो (खड्गासन-पद्मासन) आसनें मुख्य हैं। लगभग दो हजार वर्ष पूर्व आध्यात्मिक सम्राट आत्मप्रवादांगांश के ज्ञाता आचार्य कुन्दकुन्द देव हुए जिन्होंने योगिभक्ति लिखी उसमें अनेक आसनों का नामोल्लिख किया। यथा - (मू.प्रा.गा.) बहुविह पडिमट्ठाई, णिसिज्ज-वीरासणेक्क-वासीय / आणिट्ठीव कडु-वदीए, चत्तदेहेय वंदामी In1 सं.टी. .......... निषद्या चोपविष्ट-कायोत्सर्गः वीरासनं एकपार्श्वश्चते निषद्य-वीरासनैकपार्श्विनः तान्। यहाँ तीन आसनों का उल्लेख किया गया है निषद्यासन (पद्मासन, अर्घपद्मासन, सिद्धासन पर्यंकासन आदि जो बैठे-बैठे लगाई जाए) वीरासन (वीरों की आसन, पद्मासन में दोनों हाथों को नाभि के पास करना) एक तथा पाश्र्वासन (एक पार्श्व/पखवाडे/करबट से लेटकर ध्यान करना) ऐसे योग को धारण करने वाले जैन योगियों के लिए नमस्कार हो। प्रतिमास्थायी का, व्युत्सर्ग/उत्थितासन/खड्गासन/ . खडी आसन/ठाणी आसन भी अर्थ होता है। दि. जैनाचार्य कुन्दकृत योगिभक्ति (अंचलिका) आदावण-रुक्खमूल-अव्भोवास-ठाण मोणवीरासणेक्कपास-कुक्कुडासण-चउ-छ-पक्ख-खवणादि-जोग-जुत्ताणं सव्वजोई-साहूणं अर्थात् - आतापनयोग, वृक्षमूलयोग अभ्रावकाशयोग (स्थान) खडी ठाणीयोगासन, मौनयोग, वीरासन, एक्कपर्वासन कुक्कुटासन चतुर्थ-क्षपणा-योग, षट्क्षपणयोग पक्षक्षपणयोग से युक्त सर्वयोगी साधु की मैं अर्चना, पूजा, वंदना, नमस्कार आदि करता हूँ। (v)

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 286