Book Title: Bhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Author(s): Rajendra Jain
Publisher: Digambar Jain Trishala Mahila Mandal

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Page 17
________________ अभी जिनदत्तचरित, महीपालचरित, सुकुमालचरित, रेवानदीपूजा, सुभाषितार्णव, तत्वविचार सार; परमागम सार, हनुमान चरित आदि का अनुवादन सम्पादन कार्य प्रारंभ है। कुछ ध्यानागमों का अनुवाद भी किया था जो अभी तक छपे नहीं है। इसी कार्य में रुचि लेने लगा मुझको भी कुछ नया सीखने को मिला। ब्र. जी साधनहीन होने पर भी भारी पुरुषार्थशील हैं चारित्रिक उच्चता के कारण इन्होंने बड़े उद्यम से विद्या का अर्चन-अर्जन किया है मैंने इनको छोटे से ही प्राथमिक धार्मिक शिक्षण दीक्षण दिया है। स्वाभिमान, सहिष्णुता, निर्विवादपन, पन्थनिर्पेक्षता, आगमानुवर्तित्व शिक्षण आदि ये गुण इनमें कूट-कूट कर भरे है। दृष्टिहीनता होने पर इतनी उच्चशिक्षा को प्राप्त करना इनके ही वश की बात है। इन्होंने प्रस्तुत शोध प्रबन्ध . लिख कर दिगम्बर जैनों के एक प्रथम अभाव की पूर्ति की है जो सराहनीय है। . इनकी लगन, निष्टा को देखकर मैं भी शिक्षा लेता रहता था इनको शोध सामग्री को एकत्रित करने में जो दिक्कत हुई वह दिल को द्रवीभूत करने वाली थी। श्री सम्मेद शिखर की यात्रा के दौरान मैंने पूरी सहायता आरा पटना, राजगृह, बनारस आदि के सरस्वती भंडारों में की। एक बार लगा कि अब कार्य पूरा नहीं हो पाएगा समयावधि अधिक हो गई परंतु पुण्य ने जोर पकड़ा विकलांग पने का फायदा मिला। शोध प्रबन्ध जमा हो गया, सफलता प्राप्त हुई। डॉ. अब्दुल कलाम भूतपूर्व राष्ट्रपति ने पी.एच.डी. को सम्मानित कर अवार्ड किया। ब्रह्मचारी जी कठिन उद्यमी हैं अनेक जगहों से हस्तलिखीत प्रतियां लाकर मुझे दिखाकर अनुवादन का निवेदन करते हैं। प्रायःकर छोटे-छोटे चरित्र ग्रन्थ जो आज तक मूल संस्कृत के साथ नहीं छपे वे हस्तलिखित में ही दीमक के भोजन बन रहे हैं आगे चलकर मूल साहित्य का लोप हो जाएगा इस भय से भयभीत होकर पं. हीरालाल को हस्तलिखित से आधुनिक लेखन करने के लिए प्रेरित किया है अभी उन्होंने सुकुमाल, महीपाल, हनुमान चरित आदि को अपनी राइटिंग में किया है, वेजोड साहित्य है प्रथमबार देखकर हर्ष हुआ अब मैं अनेक प्रतियों से शुद्ध कर रहा हूं तुरंत अनुवादन कर कंपोजिंग करवाकर छपवाने का विचार है। ब्र. संतोष जी आमनपुर, जबलपुर का इसमें महत्वपूर्ण योगदान है। इसके पूर्व इन्होंने तत्वविचार सार कृति को छिंदवाड़ा चातुर्मास में अनुवादितं किया व हमसे करवाया कुछ अशुद्धि के साथ छप गई फिर सागर के दो चातुर्मासों में मैंने संस्कृत छाया की फिर कम्पोजिंग हुई, उसी समय भगवान पार्श्वनाथ के अनेक साहित्यिक स्तोत्रों का अनुवादन किया गया जिनको शान्तिनगर व सुभाष नगरीय सागर जैन समाज ने छपवाया। देवरी, बीना बड़ी बजरिया नोहटा, गैरतगंज आदि के वित्तीय सहयोग से तत्वविचार सार का नया बृहद्प छपने वाला है। सागर उदासीन आश्रम दिगम्बर जैन समाज के सहयोग से जिनदत्त चरित्र छप रहा है। राजधानी भोपाल के चातुर्मास के दौरान यह शोध प्रबन्ध त्रिशला महिला मंडल टी.टी. नगर, भोपाल द्वारा छप रहा है सबके लिए सदा धर्म ज्ञान वृद्धि रूप आशीर्वाद रहे / इस महत्वपूर्ण अभियान में सम्मिलित होकर विज्ञजन धर्मार्जनकर आत्मिक ज्ञानोन्नति करें। ऐसी मेरी सद्भावना है। --मुणि मद्दवसायर

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