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मद्रास प्रान्त ।
८५५ भावार्थः-प्रान्त 'जयकोंडा रोन्डा मण्डल' में पांगल-नाडू भागका मुगाईनडू वैगाबूरका पल्लीचण्डममें पवित्र पहाड़के मन्दिरके लिये तिरु नंदा दीप दिया है इस नंदादीपके प्रबंधके लिए कुछ जमीन दी है और उसकी मरम्मतके लिये २० कसु ईनाम दिये थे मन्दिरका नाम श्री 'आरम्भनंदिनमहाराज' है । और एक पल्लव खानदानकी णी सिण्णवाईजे अखंड नंदा दीप जलानेके लिये ६० कुसु इनाम दिये हैं।
शिलालेख नं ४ तिरुमलै पहाड़पर की रंगीन खोहपर के किवाड़की भीतपर है । भावार्थ:-चेर खानदानका आदिगैमानीने वा व्यामुक्तश्रवणो जिवल पहाइपर यक्ष और यक्षीकी मूर्तियां स्थापितकी और अरहसुगिरी श्रीअर्हत पहाड़पर घंटा और ढोल अहँतके लिये अर्पण किये हैं । महाराजके नामसे पुकारते हैं । कहते हैं कि इस मूर्तिको एक पठाण इस ग्रामकी ओर लाया था । जिस बैलकी गाडीमें यह मूर्ति थी वह इसी ग्राममें अटक गई, आगे न चली । उसी रात्रिको उस ग्रामके पाटील (मालगुजार) सैतवाल जैनको स्वम आया कि तू अपनी स्वीके अंगके आभूषण देकर इस मूर्तिको ले । उस पाटीलने प्रातःकाल होतेही वह प्रतिमा पठानसे लेकर एक जिन मन्दिर बनवाया और उसमें मूर्तिकी प्रतिष्ठा कराई।
इस मंदिरका भंडारखाता और प्रवन्ध हिरोंली निवासी शेठ 'लीलाचंद' 'हेमचंदजीके' आधीन है।
तिरुवन्नत्मलईकी पण्डनी पहाड़ीपर सुब्रह्मण्य अर्थात् महादेवके पुत्र स्कन्दका सुंदर मन्दिर है।
तिरुवाडी। जिला 'तंजौर' में 'कडलोरसे' यह ग्राम १४ मील पश्चिममें है, जो रास्ता पार्वतीपुरमको जाता है उसके किनारेपर बसा है । ग्रामकी मनुष्य संख्या करीव ५००० है, परन्तु जैनीका केवल एकही गृह है। कुछ दिनों यह ग्राम तहसीलका सदर मुकाम रहा था । इतिहाससे मालूम होता है कि यह कसबा 'आदिगैमन' राजाकी राजधानी थी । यह राजा परम जैन था और इसके राज्यका विस्तार 'सालेम' जिलेमें 'धर्मपुरीसे' 'कमवयनलूरतक था । यह कथा शैवोंका देवारम नामके कवित्त बद्ध ग्रंथमें भी लिखी है ।
ऐसा मालूम होता है। कि यह नगर प्राचीन कालमें जैनियोंका था।शैवोंका ग्रंथ ईसाकी . १८ वीं सदीमें लिखा मालूम पड़ता है तिरुवाडी विजयानगर के राजाओंका १८ वी
सदीमें प्रान्तका सदर मुकाम था।