Book Title: Bharatiya Chintan me Moksha aur Mokshmarg
Author(s): Devendramuni Shastri
Publisher: Z_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf

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Page 1
________________ देवेन्द्र मुनि शास्त्री, साहित्यरत्न [प्रसिद्ध विद्वान, अनुसंधाता एवं पचासों ग्रन्थों के लेखक ] जन्म, जरा, मरण, आधि-व्याधि एवं उपाधि से मुक्त होने की जिज्ञासा जब जगी तो दर्शन की यात्रा प्रारम्भ हुई और 'मोक्ष' पर उसे अन्तिम मंजिल मिली । भारतीय चिन्तन में मोक्ष और मोक्षमार्ग 'मोक्ष' प्राप्ति के विषय में भारतीय चिन्तक 'कितनी गहराई तक पहुँचे और कितनी ऊँचाई को स्पर्श कर पाये, इसका प्रमाण-पुरस्सर विवेचन यहाँ प्रस्तुत है । दर्शनशास्त्र के जगत में तीन दर्शन मुख्य माने गये हैं-यूनानी दर्शन, पश्चिमी दर्शन और भारतीय दर्शन । यूनानी दर्शन का महान चिन्तक अरिस्टोटल ( अरस्तु) माना जाता है। उसका अभिमत है कि दर्शन का जन्म आश्चर्य से हुआ है ।" इसी बात को प्लेटो ने भी स्वीकार किया है। पश्चिम के प्रमुख दार्शनिक डेकार्ट, काण्ट, हेगल प्रभृति ने दर्शनशास्त्र का उद्भावक तत्त्व संशय माना है। भारतीय दर्शन का जन्म जिज्ञासा से हुआ है और जिज्ञासा का मूल दुःख में रहा हुआ है । जन्म, जरा, मरण, आधि-व्याधि और उपाधि से मुक्त होकर समाधि प्राप्त करने के लिए जिज्ञासाएँ जागृत हुईं। अन्य दर्शनों की भांति भारतीय दर्शन का ध्येय ज्ञान प्राप्त करना मात्र नहीं है अपितु उसका लक्ष्य दुःखों को दूर कर परम व चरम सुख को प्राप्त करना है। भारतीय दर्शन का मूल्य इसलिए है कि वह केवल तत्त्व के गम्भीर रहस्यों का ज्ञान ही नहीं बढ़ाता अपितु परम शुभ मोक्ष को प्राप्त करने में भी सहायक है । भारतीय दर्शन केवल विचार प्रणाली नहीं किन्तु जीवन प्रणाली भी है। वह जीवन और जगत के प्रति एक विशिष्ट दृष्टिकोण प्रदान करता है । मोक्ष भारतीय दर्शन का केन्द्र बिन्दु है । श्री अरविन्द मोक्ष को भारतीय विचारधारा का एक महान् शब्द मानते हैं । भारतीय दर्शन की यदि कोई महत्त्वपूर्ण विशेषता है जो उसे पाश्चात्य दर्शन से पृथक् करती है तो वह मोक्ष का चिन्तन है । पुरुषार्थ चतुष्टय में मोक्ष को प्रमुख स्थान दिया गया है। धर्म साधन है तो मोक्ष साध्य है । मोक्ष को केन्द्र बिन्दु मानकर ही भारतीय दर्शन फलते और फूलते रहे हैं । मैं यहाँ पर मोक्ष और मोक्ष मार्ग पर तुलनात्मक दृष्टि से चिन्तन प्रस्तुत कर रहा हूँ । भारतीय आत्मवादी परम्परा को वैदिक, जैन, बौद्ध और आजीविक इन चार भागों में विभक्त कर सकते हैं । वर्तमान में आजीविक दर्शन का कोई भी स्वतन्त्र ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है, अतः आजीविक द्वारा प्रतिपादित मोक्ष के स्वरूप के सम्बन्ध में चिन्तन न कर शेष तीन की मोक्ष सम्बन्धी विचारधारा पर चिन्तन करेंगे । न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, पूर्वमीमांसा और उत्तरमीमांसा, ये छह दर्शन वैदिक परम्परा में आते हैं । पूर्वमीमांसा मूल रूप से कर्म मीमांसा है, भले ही वह वर्तमान में उपनिषद् या मोक्ष पर चिन्तन करती हो, पर प्रारम्भ में उसका चिन्तन मोक्ष सम्बन्धी नहीं था । किन्तु अवशेष पाँच दर्शनों ने मोक्ष पर चिन्तन किया है। Shaharumadhy Jam Luocan यह स्मरण रखना चाहिए कि इन वैदिक दर्शनों में आत्मा के स्वरूप के सम्बन्ध में जैसा विचार भेद है वैसा मोक्ष के स्वरूप के सम्बन्ध में भी चिन्तन-भेद है । यहाँ तक कि एक दूसरे दर्शन की कल्पना पृथक्-पृथक् ही नहीं अपितु एक-दूसरे से बिलकुल विपरीत भी है। जिन दर्शनों ने उपनिषद् ब्रह्मसूत्र आदि को अपना मूल आधार माना है उनकी PM * flies 2 000000000000 000000000000 XOTCCCCDE

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