Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Author(s): Balbhadra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 327
________________ २९६ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्य भी मिलते हैं, जिनसे यह सिद्ध होता है कि यह क्षेत्र सम्पूर्णतः दिगम्बर धर्मानुयायियोंका है। श्वेताम्बर मुनि शीलविजयजीने १७वीं शताब्दीमें दक्षिणके तीर्थों की यात्रा की थी। उन्होंने 'तीर्थमाला' नामसे अपनी यात्राका विवरण भी पुस्तकके रूपमें लिखा था। उसमें उन्होंने लिखा है कि यहाँसे समुद्र तक सर्वत्र दिगम्बर ही बसते हैं। इसके पश्चात् उन्होंने सिरपुर अन्तरिक्षको दिगम्बर क्षेत्र लिखा है। इससे पूर्व यतिवयं मदनकीर्ति ( ईसाकी १३वीं शताब्दी ) अन्तरिक्ष पाश्वनाथको स्पष्ट ही दिगम्बरोंके शासनकी विजय करनेवाला अर्थात् दिगम्बर धर्मको मूर्ति बता ही चुके थे। यहां उत्खननके फलस्वरूप जो पुरातत्त्व उपलब्ध हुआ है, उससे भी सिद्ध होता है कि ये मन्दिर और मूर्तियां दिगम्बर आम्नायकी हैं। प्रथम उत्खनन १९२८ ई. में हुआ था। सिरपुर गांवके बाहर पश्चिम दिशाकी ओर पवली मन्दिर है। मन्दिरकी दीवारके इर्द गिर्द पक्के फर्शके ऊपर ४-५ फुट मिट्टी चढ़ गयी थी। उसे सन् १९६७ में हटाया गया। फलतः मन्दिरके तीन ओर दरवाजोंके सामने १०x१० फुटके चबूतरे और सीढ़ियां निकलीं। इसके अतिरिक्त पाषाणकी खड्गासन सर्वतोभद्रिका जिनप्रतिमा, जिनबिम्ब स्तम्भ, एक शिलालेखयुक्त स्तम्भ और अन्य कई प्रतिमाएं निकली हैं । गर्भगृहकी बाह्य भित्तियां भी निकली हैं, जिनमें १८ इंच या इससे भी लम्बी, ९ इंच चौड़ी और २ फुट ३ इंच मोटी ईंटें लगी हुई हैं। ____ इसी प्रकार मन्दिरके अन्दर गर्भगृहके सामने पत्थरके चौके लगानेके लिए खुदाई की गयी। खुदाईमें दिनांक ६-३-६७ को ११ अखण्ड जैन मूर्तियां निकलीं। इनमें एक मूर्ति मुंगिया वर्णकी तथा शेष हरे पाषाणकी हैं। सभीके पादपीठपर लेख उत्कीर्ण हैं। इन लेखोंमें आचार्य रामसेन, मलधारी पद्मप्रभ, नेमिचन्द्र आदिका नामोल्लेख मिलता है, जो दिगम्बर आचार्य थे। इन मूर्तियों, स्तम्भों और लेखोंमें एक भी वस्तु श्वेताम्बर सम्प्रदायसे सम्बन्धित नहीं है, सभी दिगम्बर मान्यताके अनुकूल हैं। पुरातत्त्व विभागके पूर्वांचलकी सर्वे रिपोर्ट ( १७-४-७३ ) में लिखा है-सिरपुरका प्राचीन मन्दिर अन्तरिक्ष पार्श्वनाथका है तथा वह दिगम्बर जैनोंका है। लिस्ट ऑफ प्रोटेक्टेड मोन्यूमेण्ट ( List of Protected Monuments, inspected by the Govt. of India, correted on Sept. 1920 )-यह सिरपुर गांवके बाहरका अन्तरिक्ष पाश्वनाथका मन्दिर जैनोंका है तथा पुरातत्त्व विभागने इसको संरक्षित करके अपने अधिकारमें लिखा है और ता. ८ मार्च १९२१ के करारके अनुसार दिगम्बरी लोग साधारण मरम्मत कर सकते हैं तथा विशेष मरम्मत सिर्फ सरकार ही करेगी। इसके पश्चात् पुरातत्त्व विभाग भोपालकी ओरसे दिनांक ५-१२-६४ को दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटीके नाम एक महत्त्वपूर्ण पत्र आया। उसमें लिखा है-"सरकारकी ओरसे सिरपुरके पवली मन्दिरकी मरम्मत नहीं हो सकी क्योंकि पवली मन्दिर सुरक्षित स्थानोंकी सूचीमेंसे निकाल दिया है । आप मालिक हैं । अब आप उचित मरम्मत करा सकते हैं।" इस मन्दिरके सम्बन्धमें इम्पीरियल गजेटीयर ( आक्सफोर्ड ) बाशिम डिस्ट्रिक्ट-भाग ७, प. ९७पर उल्लेख है कि अन्तरिक्ष पार्श्वनाथका प्राचीन मन्दिर इस जिले में सबसे अधिक आकर्षक कलापूर्ण स्थान है। यह मन्दिर दिगम्बर जैनोंका है। यहाँ खुदाईमें जो मूर्तियां और स्तम्भ निकले थे, उनके लेख इस प्रकार पढ़े गये हैं

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