Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Author(s): Balbhadra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 367
________________ ३३६ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ मुड़कर देखा । बस मूर्ति वहीं अचल हो गयी । मूर्ति चमत्कारी है। अनेक जैन और अजैन यहाँ मनौती मनाने आते हैं । ऋषभदेवसे बीछीवाड़ा तक बस सर्विस है । वहांसे १० कि. मी. अनगढ़ पहाड़ी सड़क है । इसमें लगभग ६ कि. मी. तक बस जातीं है । शेष मागं मैरचो नदी तक पैदल पूरा करना पड़ता । पास ही मोदर नामक भीलोंका गाँव है । चारों ओर पहाड़ और जंगल है । इस जंगलमें शेर भी रहता है । मन्दिरके बगल में धर्मशाला बनी हुई है । यात्रियोंको बछीवाड़ा में जैनों से मिलकर सवारीकी व्यवस्था कर लेनी चाहिए । अन्देश्वर पाश्र्वनाथ - यह स्थान जंगलमें है तथा कलिंजरा - कुशलगढ़ के मध्य में अवस्थित है । ऋषभदेव से डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, कलिंजरा होकर इस अतिशय क्षेत्र तक पहुँचते हैं । यहाँ पार्श्वनाथ भगवान् के दो मन्दिर बने हुए हैं। बड़े मन्दिर में भगवान् पार्श्वनाथकी १ फुट ९ इंच ऊँची मूलनायक प्रतिमा अतिशयपूर्ण है । स्वप्न द्वारा जानकर एक किसानने भूगर्भ से इसे निकाला था । यहाँ भी भक्तजन मनोती मनाने आते हैं । मन्दिर के बाहर धर्मशाला बनी हुई है । आबू - पश्चिम रेलवेकी मीटर गेज रेलकी अहमदाबाद- दिल्ली लाइनपर आबू रोड स्टेशन है । आबू रोड स्टेशनसे २८ कि. मी. दूर माउण्ट आबू है। वहाँ दिलवाड़ा में दिगम्बर जैन आदिनाथ मन्दिर और धर्मशाला है । धर्मशालासे थोड़ी दूर विमलशाहका बनवाया हुआ विमलवसहि नामक श्वेताम्बर मन्दिर है, जिसके निर्माण में उस समय अठारह करोड़ रुपये व्यय हुए थे । इसमें ५२ देहरियां हैं। इसके सामने श्री कुन्थुनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर है । इसके निकट लूणवसहि नामक दूसरा श्वेताम्बर मन्दिर है । इसका निर्माण मन्त्री वस्तुपाल और तेजपालने लगभग बारह करोड़ रुपये लगाकर कराया था। इसमें ४८ देहरियां हैं। दोनों मन्दिर संगमरमरके हैं और अपनी अद्भुत शिल्पकला और सौन्दर्यके लिए संसारमें विख्यात हैं । इन मन्दिरोंके स्तम्भों और छतोंकी कला दर्शनीय है । दिलवाड़ा से लगभग ६ कि. मी. आगे अचलगढ़ है । यहाँ आदिनाथ मन्दिरमें आदिनाथ भगवान्की अष्ट धातुकी मूर्ति १५४४ मन की कही जाती है । तरंगा - आबू रोड से पश्चिम रेलवेपर महसाना जंक्शन ११७ कि. मी. है और महसानासे तारंगा हिल स्टेशन ५७ कि. मी. है। स्टेशनके निकट दिगम्बर जैन धर्मशाला और मन्दिर है । स्टेशन से तारंगा क्षेत्र ९ कि. मी. है। पक्की सड़क है। बस जाती है । तारंगा सिद्धक्षेत्र है । यहाँ से वरदत्त, सागरदत्त आदि साढ़े तीन करोड़ मुनि मुक्त हुए हैं । यहाँ कोटिशिला और सिद्धशिला नामक दो छोटी पहाड़ियां हैं। दोनों पहाड़ियोंपर टोंकें हैं। दोनों ही पहाड़ियोंपर क्रमशः भगवान् नेमिनाथ और भगवान् मल्लिनाथको संवत् १२९२ की प्रतिमाएँ हैं । तलहटी में १४ मन्दिर बने हुए हैं । यहीं दिगम्बर जैन धर्मशाला है । यहाँसे लगभग एक मील दूर मोक्षवाटी नामक पहाड़ो है । विश्वास किया जाता है कि यहाँसे भी अनेक मुनियोंको निर्वाण प्राप्त हुआ था । गिरनार - तारंगासे महसाना लौटकर महसानासे राजकोट २४६ कि. मी. रेल द्वारा जाना पड़ता है। राजकोटसे ट्रेन बदलकर जूनागढ़ जावें । जूनागढ़से गिरनार सड़कसे ५ कि. मी. है। यहाँ श्री बण्डीला दिगम्बर जैन कारखाना ( धर्मशाला ) है । धर्मशाला के अन्दर ही मानस्तम्भ और मन्दिर हैं जिसमें ९ वेदियाँ हैं । धर्मशाला से कुछ दूर चलनेपर सीढ़ियाँ मिलती हैं । पहली टोंक तक ४४०० सीढ़ियाँ हैं । पहली टोंकपर ४ दिगम्बर मन्दिर और दिगम्बर जैन धर्मशालाएँ हैं । निकट ही राजुल गुफा है। कहा जाता है कि यहीं बैठकर राजुलमतीने तपस्या की थी । गुफा में अंधेरा रहता है और बैठकर जाना पड़ता है । यहाँसे १०५ सीढ़ियाँ चलनेपर गोमुख गंगा (कुण्ड ) मिलती है । कुण्डके दूसरी ओर दीवारमें चौबीस चरण बने हुए हैं। गोमुख गंगाके बगल से सहस्राम्र वनको सीढ़ियाँ जाती हैं। इनकी संख्या १४९९ है । गोमुखसे आगे बढ़ने पर राखंगारका

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