Book Title: Bhaktamar Stotra Sarth
Author(s): Subodhvijay
Publisher: Mahesh Sundarlal Kapadia

Previous | Next

Page 249
________________ दिवाशी मला का नील डुमाणावापना निन कि हिमानी ॥१३॥ ||वकते सुरन ऐरगनेन्द्यरितिः इशे पनि र्कित गजित यो पमान बिब काले कम लिने छतिज्ञा कर स्पयासरे नवति प्रामुपलास कल्ं ॥१३॥ चायोगिनो जिनसदा प्रमात्मरूप मन्त्रेषयतिश‌या बुद्ध को शुदेश ॥ भूतस्य निर्मिल रुचे यदिदा किमन्यादक्षम्मान विपद्नमुकलिका या ॥ १४॥ संपूर्ण मंडला कि कला कलाम् ॥ मुखाशुगात्रि तुघमंतव लघयति। ये सेप्रिता खिजगदीश्वर नाथ मे कंग कत्रांन्निवारयति संच सोयधे ष्टं ॥ १४॥ ध्याना सिनेशलवतो तदिनं क्षणेन । देहं विहायय मासांत तो ज्ञानलाय्कतावमपास्य जो दो । धामी करत ॥ ૨૩૪

Loading...

Page Navigation
1 ... 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276