Book Title: Bhagwan Mahavirna 26 Bhav
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Granthmala

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Page 454
________________ २० यदि नामकर्म भी हैं । उचचकुलका वास्तविक भावार्थ जिस कुलमे अहिंसा, सत्य, अचौर्य, शील, संतोष, क्षमादि गुणौका वातावरण एवं आचरण हो । 'जेमां पातानु' चित चोराय तेनुं नाम चारी ' क्या ही उच्च एवं महती सत्यीद्धारिका व्याख्या । धन्य । भगवान के एक कोडवर्ष के चारित्र प्रर्याय में अप्रमत गुणस्थान का आरोहण काल मात्र १ एक अन्तसेभो न्यून अप्रमतावस्था अर्थात् सिद्धावस्था, पूर्णाति - पूर्णावस्था, सचिदानंद रूपावस्था, पूर्ण समरसीभाव. मय - अनुभव अवस्था, ऐसी ऊचचतम, महत्तमस्थित ता साधना काल में अलातिअलप होगी यह स्वाभाविक है औदयिक औपशमिक़, क्षायोपशमिक, क्षायिक भावांकी खूबी रहस्यों को अत्यन्त सरल रुपसे व्यावहारिक जीवन के रुपसे जगह-जगह पर समझाया गया है । इस प्रकार इस [ प्रथकी] ग्रंथरत्नको जितनी महिमा गाई जाऐ थोडो है । मुमुक्षुओं के लिए परम हितांशक्षा एवं सम्वल रूप है निश्रचय हो यह । 9 मैंने इस नथरत्न केा देा (२) बार पढ़ा। फिर भी तृप्ति नहीं हुई। आपश्रीकी यह रचना वास्तव में ही मुमुक्षु जगतका एक अनुपम भेट है ईस महाकालाहलपूर्ण, अशान्तिपूर्ण ऐसे तत्त्वज्ञान भरपूर आपके ग्रंथके वाचन से बड़ा आनन्द प्राप्त हुआ फ्र बातावरण में मुझें तो

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