Book Title: Bhagavati Jod 05
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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वहा
१. शतक पनरमा मैं विषे, एकेंद्रियादि मांय । गोशालक नों जीव जे जनम मरण बहु पाय ॥
२. सोलम जतके विण हिये जो नणां पहियाण जनम-मरण कहिये अछे, वारू श्री जिन-वाण ।। तो, उद्देशक अभिधान । कहिये छै सुविधान ॥ लोहादिक प्रति जान । अधिकरण पहिखान ॥
३. इण संबंध इण शतक सूचक गाथा आदि जे ४. धरिये कूटण तें अरथ जेह विषे तेहने कही
५. ए लोहार प्रमुख तणों,
उपधि विशेष कहाय
।
लोक मांहि अहरण वहे, तेह जाणवी ताय ॥ ६. तेह प्रमुख वस्तु अरथ प्रथम उद्देशक मांद उद्देशक नों नाम पिण, अधिकरणी कहिवाय ॥ ७. जरादि अर्थ विषयपणे जरा नाम उद्देश।
कर्म प्रकृति आदिक कथन, तृतीय नाम सुविशेष ||
षोडश शतक
ढाल : ३४७
८. जावतियं ए आदि दे रव कर उपलक्षित । जावतियं इम चतुर्थः, नाम उद्देस
कथित ।।
प्रतिबद्ध ।
६. गंगदत्त जे सुर तणीं, वक्तव्यता तास भाव थी पंचमः, गंगदत्त इम सिद्ध ॥
१०. स्वप्न विषय थी स्वप्न ए, वर उपयोगज अर्थ | प्रतिपादक नां भाव थी, ए उपयोग तदर्थ ॥
११. लोक स्वरूपज कैण वलि संबंध पदार्थ जे
थी, लोकज कहिया थी
१२. अवधि परूपण अर्थ थी, द्वीपकुमार नीं वारता,
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अष्टम नाम । बलि ताम ।।
दशम अवधि तसु नाम । द्वीप नाम तसु पाम ॥
१. व्याख्यातं पञ्चदशं शतं तंत्र केखियादिषु गोशालकजीवस्यानेकधा जन्ममरणं चोक्तं ।
(बु०प०६९६) २२. हा जीवजन्ममरणाच्यते इत्येवंबंधस्यास्येयमुद्देशकाभिधानसूचिका गाथा
( वृ० प० ६९६ )
४. अहिगरणि
'अहिगरण' त्ति अधिक्रियते लोहादि यस्यां साऽधिकरणी ।
५६. लोहकाराद्युपकरणविशेषस्तत्प्रभूतिपदार्थविशेषितार्थविषय उद्देकोऽधिकरण्येोष्यते स चात्र ( वृ० प० ६९६ )
प्रथमः ।
कम्मे
धियते कुट्टनार्थं ( वृ० प० ६९६)
७. जरा,
'नर' जिवित्वारेति द्वितीय:" 'रुम्मे' नि कम्प्रकृतिप्रभृतिकार्यविषयत्वात्कर्मेति तृतीयः । ( वृ० प० ६९६)
८. जावतियं
'जावइयं' ति 'जावइय' मित्यनेनादिशब्देनोपलक्षितो जामतिः। ( वृ० प० ६९०)
९. गंगदत्त
'गंगदत्त' त्ति 'गंगदत्त' देववक्तव्यताप्रतिबद्धत्वाद् गङ्गदत्त एवं पञ्चमः ।
( वृ० प० ६९७ )
१०. सुमि व उपओन
'सुमिणे य' त्ति स्वप्नविषयत्वात्स्वप्न इति षष्ठः, 'उवओग' त्ति उपयोगार्थप्रतिपादकत्वादुपयोग एव ( वृ० प०६९७)
सप्तमः ।
११. लोग,
बलि
'लोग' त्ति लोकस्वरूपाभिधायकत्वाल्लोक एवाष्टमः, 'बलि' त्ति बलिसम्बन्धिपदार्थाभिधायिकत्वादबलिरेव
(२०१०६९७)
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नवमः ।
१२. ओहि, दीव
'ओहि' ति अवधिज्ञानप्ररूपणार्थत्वादवधिरेव दशमः, 'दीव' सि द्वीपकुमार वक्तव्यतार्थो द्वीप एवैकादश: ।
( वृ० प० १९७ )
श० १६, उ० १, ढा० ३४७ ३
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