Book Title: Bal Diksha Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf View full book textPage 5
________________ को ध्यान में रखकर बाल-दीक्षाके हिमायतियोंकी ओरसे कहे जानेवाले बालदीक्षाके एक-एक उद्देश्यपर विचार करेंगे कि बाल-दीक्षाने वे उद्देश्य जैन परम्परामें कहाँ तक सिद्ध किए हैं ? इस विचारमें हम तुलनाके लिए अपनी सहचर और अति प्रसिद्ध ब्राह्मण परम्पराको तथा बौद्ध परम्पराको सामने रखेंगे जिससे विचारक जैन साधु और गृहस्थ दोनोंके सामने विचारणीय चित्र उपस्थित हो । पहिले हम विद्याकी साधनाको अर्थात् शास्त्राभ्यासको लेते हैं। सब कोई जानते हैं कि यज्ञोपवीतके समयसे अर्थात् लगभग दस वर्षकी उम्रमें ही मातापिता अपने बटुकको ब्रह्मचारी बनाकर अर्थात् ब्रह्मचारीकी दीक्षा देकर विद्याके निमित्त विद्वान गुरूके पास इच्छापूर्वक भेजते हैं। वह बटुक बहुधा भिक्षा व मधुकरीपर रहकर वर्षांतक विद्याध्ययन करता है। बारह वर्ष तो एक सामान्य मर्यादा है। ऐसे बटुक हजारों ही नहीं, लाखोंकी संख्यामें सारे देशमें यत्र-तत्र पढ़ते ही श्राये हैं। प्राजकी सर्वथा नवीन व परिवर्तित परिस्थितिमें भी ब्राह्मण परम्पराका वह . विद्याध्ययन-यज्ञ न तो बन्द पड़ा है, न मन्द हुआ है, बल्कि नई-नई विद्याओंकी शाखाओंका समावेश करके और भी तेजस्वी बना है। यद्यपि इस समय बौद्ध मठ या गुरुकुल भारतमें नहीं बना है पर सीलोन, बर्मा, स्याम, चीन, तिब्बत श्रादि देशोंमें बौद्ध मठ व बौद्ध विद्यालय इतने अधिक और इतने बड़े हैं कि तिब्बतके किसी एक ही मठमें रहने तथा पढ़नेवाले बौद्ध विद्यार्थियोंकी संख्या जैन परम्पराके सभी फिरकोंके सभी साधु-साध्वियोंकी कुल संख्याके बराबरतक पहँच जाती है । बौद्ध विद्यार्थी भी बाल-अवस्थामें ही मठोंमें रहने व पढ़ने जाते हैं । सामसेर या सेख बनकर भिक्षु वेषमें हो खास नियमानुसार रहकर भिक्षाके आधारपर जीवन बिताते व विद्याध्ययन करते हैं। लड़के ही नहीं, इसी तरह लड़कियाँ भी भिक्षुणी मठमें रहती व पढ़ती हैं। अब हम जैन परम्पराकी भोर देखें । यद्यपि जैन परम्परामें कोई ऐसा स्थायी मठ या गुरुकुल नहीं है जिसमें साधु-साध्वियाँ रहकर नियमित विद्याध्ययन कर सकें या करते हैं। पर हरेक फिरकेके साधु-साध्वी अपने पास दीक्षित होनेवाले बालक, तरुण आदि सभी उम्मेदवारोंको तथा दीक्षित हुए छोटे-बड़े साधु-साध्वी मण्डलको पढ़ाते हैं और खुद पढ़ा न सकें तो और किसी न किसी प्रकारका प्रबन्ध करते हैं। इस तरह ब्राह्मण, बौद्ध और जैन तीनों भारतीय जीवन परम्परामें विद्याध्ययनका मार्ग तो चालू है ही । खासकर बाल अवस्थामें तो इसका ध्यान विशेष रखा ही जाता है । यह सब होते हुए भी विद्याध्ययनके बारेमें जैन परम्परा कहाँ है इसपर कोई विचार करे ता. वह शर्मिन्दा हुए बिना न रहेगा। विद्याध्ययनके इतने अधिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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