Book Title: Atmanand Prakash Pustak 092 Ank 09 10
Author(s): Pramodkant K Shah
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી આત્માનંદ પ્રકાશ तीन महिला हैं । उनका अपने पति से वियोग दूसरे दिन राजा, वामन और सभासद हो चुका है और उन्होंने मौनव्रत धारण किया श्रीमतीके पास गये। वामनने कहा, "हे सुन्दरि ! हुआ है। अपने बुद्धिबलसे ऐसा कार्य करो क्या तुम मुझसे वात न करोगी ? क्या तुम कि वे बोलना शुरू कर दें ।” तारणी विद्याके यह भूल गई हो कि मैं तुम्हारे महलमे आया वलसे उसने एक शिलाको आकाशमे उडते हुए था और सर्पको निकालकर कुए मे फैसा था दिखाया और फिर राजासे कहने लगा कि और तुम्हें नोरोग कर सुख दिया था।" उसी जबतक मैं तीनों महिलाओंका मौन भंग नहीं समय वह कहने लगी, हे वामन । समुद्रमे करता तब तक मैं कोई इनाम नहीं लूगा।" गिरा हुआ जिनदत्त कहां है ? तुम्हें उसका राजा सभासदोंके साथ वामनको लेकर वृत्तान्त कसे पता चला ! तुम कौन हो ? यह धर्मशालामे गया। जिनदत्तकी तीनों पत्नीयां सब मुझे बताओ। कुबडे ने कहा, “आज वहां पर धर्माराधनमे तत्पर, मीचे दृष्टि की हुई, मुझे काम है. कल बताऊगा।" वाहिर आकर अपने सारे अंगों को कपडेसे ढके हुए बैठी सबको समाचार दिये और सभी अपने अपने हई थीं। सर्वप्रथम उसने विमलमतीको सम्बो- घरोंको गये। धन करते हुए कहा, “हे भद्रे तुम मेरे साथ तीसरे दिन विज्जाहरी के पास गया और क्यों नहीं बोलति हो ? क्या तुम यह भी भूल कहने लगा, हे भद्रे ! क्या तुम मुझे नहीं गई हो कि जब मैं ११ क्रोड रुपया हार गया जानती ? जब तु वेदीमे बैठी थी तुम्ही ने था तब तुमने पंद्रह क्रोडका कञ्चुक धूतकारों तो सोलह विद्या और विमान मांगने के लिये को दिया था।" यह वचन सुनकर विमलमतीने कहा था। विद्याके बलसे ही मैं अब सब कुछ कहा, “हे वामन ! तुम यह वृत्तान्त कैसे कर रहा हूं। उसी समय यह बोल उठी, जानते हो। क्या तुम जिनदत्त हो ।” विमल- “यह सब सत्य है । विद्यावान मन चिन्तित मतीके एसा कहने पर उसने कहा, "यह मैं रूप बना सकता है।" कला बताऊ'गा। आज मुझे काम है।" फिर क्रिमशः सभी अपने अपने स्थानको गये। For Private And Personal Use Only

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