Book Title: Atmanand Prakash Pustak 071 Ank 03 04
Author(s): Jain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 236
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir મુનિ શ્રી પુણ્યવિજ્યજી શ્રદ્ધાંજલિ-વિશેષાંક ૨૧ सिवाय वहां कुछ भी दिखाई न दिया । कीडोके खाये हुए केवल पांच-सात पन्ने बाकी थे। इस तरह शानके प्रति अंधश्रद्धाके कारण न जाने कितने अनमोल ग्रन्थ कालकी वेदी पर चढ चुके हैं।' महाराजजी ! क्या जैन ग्रन्थभडारोमें केवल जैन ग्रन्थोंका ही संग्रह रहता है या अन्य ग्रन्थोंका संग्रह भी आपके देखने में आया? ___ 'जैसे आजकल केवल साहित्य या केवल विज्ञान की जानकारी ही अध्ययन के लिए पर्याप्त नहीं, थोडा-थोडा ज्ञान सब विषयोंका होना आवश्यक है, उसी तरह प्राचीन कालमें जैन, वैदिक अथवा बौद्ध विद्वानोंको एकदूसरेकी धार्मिक एवं दार्शनिक मान्यताओंका ज्ञान आवश्यक था। विशेषकर जैन विद्वान् जैनेतर दर्शनोंका खंडन-मंडन करनेके लिए वैदिक एवं बौद्ध सिद्धान्तोका गंभीर अध्ययन करते थे । जैसलमेर, पाटण, खंभात आदिके जैन भण्डारोंमें वैदिक एव' बौद्ध ग्रन्थोंका उपलब्ध होना इसका प्रमाण है। उदाहरण के लिए भगवद्गीता पर शंकराचार्यका लिखा हुआ शांकरभाष्य, उदयनाचार्यकृत तात्पर्यपरिशुद्धि टीका तथा न्यायप्रवेश, हस्तवाल (आचार्य दिङ्नागकृत), प्रमाणवार्तिक, प्रमाणवार्तिककी स्वोपज्ञ वृत्ति, हेतुबिंदु टीका और तत्त्वसंग्रह आदि अलभ्य ग्रन्थ इन भडारोंमें मिले हैं।' धर्मकीर्तिके प्रमाणवार्तिकका संपादन एक तिव्वती प्रतिके आधारसे स्वर्गीय महापंडित राहुल सांकृत्यायनने किया हैं। 'हा, वही प्रमाणवातिक यह है । लेकिन पाटण में उपलब्ध इस ग्रन्थके. पाठभेदोंके आधारसे राहुलजी द्वारा सम्पादित ग्रन्थमें अनेक संशोधन करने पडे। यह देखिए वह संशोधित प्रति । तिब्बती और फ्रेच आदि भाषाओंके विद्वान सुप्रसिद्ध मुनि जम्बूविजयजीने इस ग्रन्थका संपादन किया और यह ग्रन्थ रोमन लिपिमें प्रकाशित हुआ। तत्पश्चात् अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिरके डाइरेक्टर पंडित दलसुख मालवणीयाने इसके कतिपय अंशका सम्पादनकर इसे कलकत्तासे प्रकाशित किया ।' जैसलमेरके जैन भंडारोंके उद्धार करनेका श्रेय आपको रहेगा। प्राकृत और संस्कृतके प्राचीन साहित्य संबंधी प्रचुर सामग्री आपके देखने में आयी होगी। कृपया इस विपुल सामग्रीकी विशेषताओं के सम्बन्धमें कुछ बताईए । ' जैसलमेरमें ताडपत्र और कागज पर लिखे हुए लगभग १० हजार हस्तलिखित ग्रन्थ होंगे। ५०० से अधिक ताडपत्र पर लिखित प्रतियां हैं। जैसलमेरमें कुल मिलाकर दस भण्डार हैं, लेकिन तीन इनमें मुख्य हैं। अनेक भण्डारोंकी बहुमूल्य ग्रन्थराशि कीडों और दीमकोंकी भेट चढ चुकी है। यहां १०वीं शताब्दीके ताडपत्रीय और १३वीं शताब्दीके कागज पर लिखे हुए प्राचीन ग्रन्थ मौजूद हैं। भारतीय प्राचीन साहित्यके संशोधन संबधी इतनी विपुल सामग्री यहां है कि आपके विद्यार्थियोंके विद्यार्थियोंको भी बरसों तक पीएच. डी. की उपाधियां मिलती रहे । संस्कृतके प्राचीन नाटक-साहित्यका संशोधन करनेकी यहां पर्याप्त सामग्री मौजूद है।' महाराजजी ! आपने अपने गत ४० वर्षों के संशोधन-कालमें कितने ही हस्तलिखित ग्रन्थका अवलोकन किया होगा ? 'गुजरातके ग्रन्थभण्डारोंमें लगभग १० लाख हस्तलिखित ग्रन्थ होंगे। इनमेंसे ३ लाख मैं देख चुका हूँ। अब तो लगता है कि इन सबको देखने के लिए अन्य जन्म धारण करने होंगे।' आप तो आगमप्रभाकर कहे जाते हैं, जैन आगम ग्रन्थोंके आप वेत्ता हैं। चित्रकलामें आपकी रुचि कैसे हो गयी ? "जैसलमेरनी चित्रसमृद्धि" नामक आपने पुस्तक भी लिखी है। मध्ययुगमें भारतीय चित्रकलाने काफी उन्नति की । काष्ठ, वस्त्र, ताडपत्र और कागज पर विविध प्रकारके मनोरंजक चित्र निर्मित किये जाने लगे। जैनधर्मके उपासक अपने पवित्र ग्रन्थोंको सुनहरे और रूपहरे अक्षरोंसे लिखवाते और एक ओर अथवा दोनों ओर पौराणिक अथवा अन्य चित्र बनवाते । कितने ही नर्तकों, गायकों, भक्तो और साधुसन्तोंके चित्र इन ग्रन्थोंके पृष्ठोकी शोभा बढा रहे है । कही योद्धागण कूच कर रहे हैं, कहीं वे For Private And Personal Use Only

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