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દિક્ષામહાત્સવ.
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ललितविजयजी विमलविजयजी सोहनविजयजी विश्यानविजयजी विविधविजयजी महाराजके जैपुरनगर में प्रवेस होतेही वो आनंद छारहा है कि लेखनीकी शक्तीनही जो लिखसके घजा पताकाओंसे मंदिर उपासरे धर्मस्थान सब सजाये गये हैं युवा वृद्ध बालसभी मनुष्य हाथी घोडे वेंड बाजे आदि जल्लूसके साथ महाराजश्रीको जैकारोंकी ध्वनी सहित नगरमें लाये हैं नित्य पूजा प्रभावना ओर स्वामी त्यों हो रहे हैं सभा और पाठशालाभी स्थापित हो गई है हमेशा व्याख्यान और उसमें भी प्रभावनाहों रही हैं अतीव प्रशंसनीय धर्मके कृत्य किये जारहे हैं मोहनवाडीको श्रीजीकी सवारी बडे भारी समारोहसे निकली है पांच (५) अठाई महोत्सब trचुकेहैं यहांसे २४ मीलपर खोवामें एक हजार वर्षका प्राचीन जिन मंदिर है लोग वहां कम आयाजाया करते थे पर महाराजश्री के उपदेश से वहांको संघ निकाला गया है वर्षमें एक बार वहाके जिन मंदिरजी के दर्शन करनेका सबने नियम लिया है इत्यादि बहुतही उत्साहपूर्वक जैपुरना वासी भाईयोने धर्मकी जो महिमा महाराजश्री के पधारनेसे कर दिखाई है उसका खुलासा बरनन् अलेहदा ( खुशखबर) में पाठक वर्गके जानने वास्ते लिख चुकेहैं अब कुच्छ उनका वरनन करते हैं जो तीन महाश्य वेराग रंगमें रंगे हुबे महाराज साहबके साथ हैं सबसे बडे श्रीमान किशनलालजी ब्राह्मणं जिला मेरठ निवासी हैं जोदिक्षाको प्रतीक्षाकर रहे हैं दूसरे श्रीमानलाला अच्छरमलजी तीसरे लालामच्छरमलजी औसवाल नाहर गोत्र होयारपुर मुल्क पंजाब निवासी हैं पिताका नाम नत्थूमलजी माताका नाम जोदेवी घरके मालदार सरीफहैं आयू लगभग २० वर्ष विवाहकी तैयारीहीथी कि दोनो भ्राता इस संसारको असार समझकर जिस प्रकार साथही जन्मलिया उसी प्रकार