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આત્માનન્દ પ્રકાશ. न बावा आत्मारामजी महाराजकी जय मुनि बल्लभविजय महाराजा की जय धर्मका सच्चा रास्ताबताने वालेकी जय इत्यादि जैकारोंकी ध्वनि सहित जैपुर नगरको माह त करते चले जातेथे. स्वर्गवासी गुरू श्री आत्मारामजी महाराजका नाम युवा बाल वृद्ध सभीकी जुवानपर छा रहाथा सबके मुखसे उसी गुरूको धन्यवाद निकलताथा कि धन्य है उस माहात्माको जिसने हमारे वास्ते माहात्मा श्रीवल्लभबिजयजी महाराज जैसे धर्मवीर धर्मका झंडा उठानेवालोंको तैयार कर दिये इसी प्रकारसे नाना भांति जस स्वर्गवासी गुरूका गुणानुबाद होरहाथा उन महात्माओंकी प्रशंसा चारों और फैलती देखकर धर्मोन्नतिकी महिमाको नः सहते हुवे एक दो निरक्षर भट्टाचार्योने वो उत्पात मचायाकि बिरादरीमें टंटा डालने के अतिरिक्त अदालत तक मागे २ फिरे और अपनी मूर्खता प्रघटकीपर अंतमें वोह भंहकी खाइकि चारों कोनेचित्त गिरे जो मूर्यके सनमुख धूल उडाई वो उल्टी आंखोमें पडकर स्वयम अन्धा बनताहे और इस जल्लूसकोभीनः देख सका रात्रीको मंदिरजीमें वो ज्ञका झक रोशनी हुई कि जिसमें जिनराजकी अंगी वो बहार देरहीथी कि दर्शकोंकी भीड समय समयपर बह रहीथी लगभग २५० मनुष्य जो पंजावसे आयेथे इस प्रकार भजन कहरहेथेकि सुननेको इतने मनुष्य मंदिरजीमें जमा होगयीक बैठने तकको जगहनः मिली सम स्त मंदिर ठसाठस मनुष्यों से भराथा आधी रात्री बीत गइथीपर मनुष्योंकी ताकाद कांचित मात्रभी नहीं घटीथी पंजाव निवासी आत्मानंद भजन मंडलीयोंने वो छटादार भजन सुनायेकि जेपुर निवासीयोंने आजतक कभी नही देखेथे गरजके रात्रीको भगव त भजन होकर प्रातःकाल सेही दिक्षाके वास्ते मोहनवाडी जानेकी तेपारी होनेलगी सारे शेहेरमें वो आनंदछा रहाथाकि जल्लूस निकालनेसे पहले ही हजारों नर नारीयोंके झंडके झुंड मोहनवाडी