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ઉન્નતિ ન: (નેક કારણ.
૧૧. जो कॉनफिरन्स आदि मेलावडोमें महाशय पधारें उनको आप अग्रेसर लोग उपदेश सुना सक्ते हो-अपनी जाति की त्रुटियां भी बता सक्तेहो पर बाकी की लग भग तेरह १३ लाख जाती को कौन सुझाने जावेगा यदि उपदेशक मंडल होगा तो ग्रामो ग्राम भ्रमण करके सारी जैन जाति को जगावेंगा और चंदा भी करके भिजवाऐंगे क्योंकि कमानेका तो फिक्र हुवा दुर क्योंकि तनख्वाह तो उपदेशक फंडमेंसे मिलेगी तो सारी उमर सिवाय जैन जातिकी उन्नतिक करनाही क्या है यदि आप लोग कोलिजभी खोलो पाठशाला खोलो जीर्ण मंदिरोद्धार करावो कौनफिरन्स हमेशा के वास्ते कायम फंड भराओ निराश्रय भाईयों की सहायता करो इत्यादि कुछही धर्म कार्य करो विना रूपचंदके कुच्छ कर नही सक्ते और रूपचंद [रुपैया जमा करनेको घरसे बाहर निकले कान, सभी अपने २ धंदेमें लगे हैं-यदि दो चारने किसी कारणसे कुच्छ कार्य करभी दिया तो क्या समग्र जातिको इतने आदमी काफी हो सक्ते हैंमें दावेके साथ कहताहूं कि कुच्छ नहीं हो सकता. ... जबतक उपदेशकोंकी काफी तादादकी विद्वान पारटी उद्यमी नही कायम होगी जाति पार देश सुधार धर्मसुधार कुच्छ भी नहीं होगा-जो लोग संसारी कार्यों में गलता पेचां हो रहे हैं भला उनके विभाग इधर क्यों कर रात्री दिविस रजू हो सक्ते हैं (और है भी सत्य ) जो तिजारती आदमी या नोकरी पेशे हैं वो अपना गुजारे का काम करें, या जाति सुधारे में आ अंडे कौनफिरन्समें जो फंड हैं मान लिया जाय कि वो खाते चल तो हैं (परन्तु नही) विना इस खातेके सभी बंदसेही समझो ध्यान करो कि निराश्रय फंडमेंसे जो रूपया दिया जाता है उनके लेनेवाले इस काबिल हैं या योंही गबन होता है, या जो भाई लेने योग्य है
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