Book Title: Atma Prakasha 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Virchandbhai Krushnaji Mansa
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अ-२
7 'भजन ) ओधवजी संदेशो कहेजो श्यामने. ए राग. अपूर्व अवसर समकित श्रद्धाथी लही, वैरी वामीश कर्म मर्म जंजाळजा. सादि अनंति स्थिति भांगो ए कह्यो, टळे अनादि शांतपणे निरधारजो. दुःख सुख समभावे वेदु हुं आत्ममां, शत्रुमिम पुत्रादिकपर समचित्त जो. चउगति छेदक चोथु गुणठाणु लही, दर्शनमोहनी टळतां थाउं पवित्रजो अनंतभव कारक क्रोधादिक चउ हणी, आतमभावे थाउ हुं सम स्थिरजो. अंतर्दृष्टिथी आतमने देखतां, टळे अनादिपरपरिणतिभव पीडजो. आत्मासंख्यप्रदेशे दृष्टि जोडतां, संयम हेतु पामी थाउं फकीरजो. बार कषायने टाळी गुणश्रेणि चढे. धर्मध्यान वेगेथी संयत वीर जा. रोगशोकवियोगादिक दूरे टळ्या. निरागी निःस्नेही अप्रतिबद्धजो. निर्लेपी आकाशनी पेरे तत्वथी, क्षपक श्रेणि शुकल परिणामे लद्धजो. भिन्न भिन्न स्वरूप आतमनुं ओळख्यु,
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