Book Title: Atma Darshan aur Vigyan ki Drushti me
Author(s): Ashok Kumar Saxena
Publisher: Z_Jain_Divakar_Smruti_Granth_012021.pdf

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Page 8
________________ श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ / चिन्तन के विविध बिन्दु : 456 : ने टेलीपैथी द्वारा कई मील दूर एक प्रयोगशाला में अनुसन्धानरत वैज्ञानिकों को सम्मोहित कर अनुसन्धानकर्ताओं को अपने प्रयोग से हटाकर दूसरे प्रयोग में लगवा दिया। यह घटना सिद्ध करती है कि भौतिक शरीर के परे मनुष्य के सूक्ष्म शरीर का भी अस्तित्व है / - आत्मा या प्राणों की गुत्थी आज भी वैज्ञानिकों के सम्मुख प्रश्न चिन्ह बनी खड़ी है। वे नहीं कह सकते कि प्राण मस्तिष्क में बसते हैं या आत्मा में, या मस्तिष्क और आत्मा का कोई ऐसा सम्बन्ध है, जिसका पर्दा उठना अभी बाकी है। प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री मिखाइल पोलान्यी इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि विश्व की अधिकांश वस्तुओं का अस्तित्व कुछ ऐसे सिद्धान्तों पर आधारित है, जिनका ज्ञान आधुनिक वैज्ञानिकों को नहीं है। प्राणी के सम्बन्ध में हम जितना जानते हैं, उससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि मानव शरीर एक 'यन्त्र' है, किन्तु 'मैं' इसकी गतिविधियों को नियन्त्रित करता है। चित्त-शरीर समस्या सदा से जीवित है, हर्मन वेल के शब्दों में-"हमें विज्ञान के आगे विकास की प्रतीक्षा करनी होगी। सम्भवतः हजारों वर्ष तक, तब जाकर हम द्रव्य, जीवन तथा आत्मा के जटिल तानेबाने का एक विस्तृत चित्र प्रस्तुत कर सकेंगे और इस साहसपूर्ण कार्य को मानव किस प्रकार झेल सकेगा, सिवा जीवात्मा तथा परमात्मा की परस्पर पूरकता में आस्था के आधार पर ?" [प्रस्तुत लेख में लेखक ने आत्मा के सम्बन्ध में पौर्वात्य एवं पाश्चात्य दार्शनिकों. वैज्ञानिकों एवं डाक्टरों के अभिमत दिये हैं। इसमें उनके अनुभवों व प्रयोगों के आधार पर बने विचार हैं। आधुनिक जगत आत्मा के सही स्वरूप तक कब पहुँचेगा यह मन्जिल अभी दूर लगती है। -संपादक परिचय एवं पता: अशोककुमार सक्सेना दर्शन और विज्ञान के अध्येता वरिष्ठ शिक्षक जीव-विज्ञान जवाहर विद्यापीठ, कानोड़। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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