Book Title: Arbudhachal aur Taparshvavati Pradakshina Jain Tirth Author(s): Jodhsinh Mehta Publisher: Z_Arya_Kalyan_Gautam_Smruti_Granth_012034.pdf View full book textPage 7
________________ [३४]MAIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIII दीयाणा ने नादिया, जीवित स्वामी वांदिया" अर्थात इन तीनों तीर्थों में भगवान महावीर की जीवितकाल की मूर्तियां हैं। नाणा, पिंडवाडा से १२ मील पर और नारणा रेल्वे स्टेशन से १३ मील पर है। यहाँ के बावन जिनालय के मंदिर में बादामी रंग की वीर प्रभु की सुन्दर प्रतिमा है। दीयारणा सरूपगंज स्टेशन से करीब १० मील दूर है और यहाँ पर भी प्राचीन, हृदयंगम और मनोहर, श्री महावीर स्वामीकी मति है जिसके परिकर की गादी पर वि. सं. ९९९ का खरोष्टी लिपि का लेख है और नादियां (प्राचीन नाम नन्दिपुर) में जो कि सिरोहीरोड रेल्वे स्टेशन से १३ और बामणवाडाजी से ४ मील पर है, बावन जिनालययुक्त प्राचीन वीर चैत्य है जिसमें भगवान् महावीर की अद्भुत विशालकाय और मनोहर मूर्ति को उनके बडे भाई नंदीवर्धन ने भराई थी। इस मूर्ति के प्रासन पर भी खरोष्टी में लेख है। मन्दिर के बाहर, ऊंची टेकरी पर एक देवरी है जिसमें चंडकोशिया नाग को, वीर प्रभु को डंक मारते हुए प्रदर्शित किया गया है। लोटाणा तीर्थ : नांदिया से ४ मील दक्षिण की तरफ, लोटाणा गाँव से प्राधे मील पर, पहाड़ की तलहटी में एक सुन्दर प्राचीन तीर्थ है जहाँ पर मुलनायक, श्री ऋषमदेव भगवान की भव्य अद्भुत मति दर्शनीय है। यह और परम सात्विक, लगभग ढाई या तीन हाथ बडी है। बाहर रंगमण्डप में प्राचीन काउसग्गिये भगवान् पार्श्वनाथ जी के हैं जिनमें धोती की रेखाओं का शिल्प अद्भुत है। दाहिनी ओर के काउसग्गिये पर संवत् ११३७ का लेख है और निवृत्ति कुल के श्रीमद् आम्रदेवाचार्य का उल्लेख आता है । बांई ओर श्री वीर प्रभु की सुदर परिकर सहित मूर्ति है जिसके काउसग्गिये में संवत् ११४४ का लेख खुदा हुआ है। जिसमें अंकित है कि लोटारगा के चैत्य में प्राम्वाटवंशीय श्रेष्ठि अाहीण ने श्रेष्ठि डीव प्रामदेव ने श्री वर्द्धमान स्वामी की प्रतिमा कराई थी। बामणवाडा जी सिरोहीरोड रेल्वे स्टेशन से ५ मील पर है। यह प्राचीन स्थापना तीर्थ कहा जाता है। यहाँ पर लगभग २२०० वर्ष प्राचीन राजा संप्रति के समय का, बावन जिनालय सहित अति रमणिक मन्दिर है। इसके बारे में ऐसी मान्यता है कि छद्मावस्था में वीर भगवान् जब यहाँ विचरे थे तब घोर उपसर्ग होकर, भगवान् के कानों में कीले ठोके गये थे, वे उस स्थान पर निकाले गये थे और इस जगह, प्रभु की चरणपादुका, एक छोटी देवरी में स्थापित की गई है । मन्दिर के बाहरी भाग में, श्री महावीर प्रभु के पूर्व के २७ भव, रंगे हुए संगमरमर के पट्टों पर बड़े रोचक दिखाई देते हैं । पास की पहाड़ी पर सम्मेतशिखर की रचना निर्माण हो रहा है। अजारी: पिंडवाड़ा से तीन मील के अन्तर पर है जहाँ पर भी भगवान महावीर का बावन जिनालय वाला मंदिर है। कलिकालसर्वज्ञ प्रसिद्ध जैनाचार्य श्री हेमचन्द्रसरिजी ने, सरस्वती देवी की आराधना की थी जिससे यह तीर्थ 'सरस्वती तीर्थ' भी कहलाता है। यहाँ से करीब ४ मील पर बसन्तगढ़ के प्राचीन जैन मन्दिरों के खंडहर दृष्टिगोचर होते हैं। उपरोक्त छोटी पंचतीर्थों के वर्णन से स्पष्ट है कि इनका भगवान् महावीर के जीवितकाल से बहुत सम्बन्ध है। किन्तु ऐतिहासिक अनुसंधान करने की परम आवश्यकता है। सिरोही और मीरपुर : सिरोही, बामणवाडाजी से करीब ८ मील पर है। यहां पर १८ जैन मंदिर हैं जिसमें से १५ मंदिर एक ही मोहल्ले में होने से 'देहराशेरी' कहलाती है। इसमें से तीन मंजिला चौमुखाजी का मंदिर प्रसिद्ध है, इसकी प्रतिष्ठा 2) અમ આર્ય કયાણાગતમ સ્મૃતિગ્રંથ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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