Book Title: Aparigraha
Author(s): D R Mehta
Publisher: D R Mehta

Previous | Next

Page 8
________________ मानते हैं। वे स्वैच्छिक संघीय व्यवस्था को राज्य का विकल्प मानते हैं। मनुष्य स्वतंत्र है तथा स्वैच्छिक पारस्परिक सहयोग ही मनुष्यसमाज के कल्याण-नैतिक और भौतिक कल्याण-का आधार हो सकता है, संपत्ति का संग्रह नहीं। XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX क्वेकरवाद : इंग्लैंड में सत्रहवीं शताब्दी में स्थापित रिलीजियस सोसाइटी ऑफ फ्रेंड्स के सदस्य को क्वेकर कहा जाता है और संगठन को क्वेकरवाद। एक ईसाई संगठन की तरह प्रारंभ हुए इस संगठन में कालांतर में अन्य धर्मों के अनुयायी भी सदस्य हो सकते हैं, जो इस संगठन के बुनियादी सिद्धांतों से सहमत हों क्योंकि वे सिद्धांत ऐसे हैं, जिन्हें किसी भी धर्म का अनुयायी स्वीकार कर सकता इस संगठन की स्थापना का श्रेय जार्ज फॉक्स को दिया जाता है, जिसका विश्वास था कि मनुष्य ईश्वर के साथ सीधे संबंध स्थापित कर सकता है, इसके लिए किसी मध्यस्थ-चर्च या पुरोहित आदि-की आवश्यकता नहीं है। क्वेकरवादी, इसीलिए, किन्हीं बाह्य धार्मिक संस्कारों में यकीन नहीं रखते। उनका विश्वास है कि जीवन अपने में ही पवित्र है। क्वेकरवाद के मूल सिद्धांत मूलत: चार वक्तव्यों (Testimony) में व्यक्त किए गए हैं, जिनमें समय-समय पर संशोधन-परिवर्धन भी होता रहता है। ये कथन हैं-(1) टेस्टिमनि ऑफ पीस, (2) टेस्टिमनि ऑफ इक्वेलिटी, (3) टेस्टिमनि ऑफ इंटिग्रिटी (टूथ) और (4) टेस्टिमनि ऑफ सिंपलिसिटी। इनका सारांश यही है कि प्रत्येक मनुष्य का जीवन शांति, समानता, प्रामाणिकता (सत्य) और सादगी के लिए समर्पित होना चाहिए। उसे वैयक्तिक स्तर पर तो ऐसा जीवन जीना ही है। साथ ही, इन आदर्शों के लिए काम भी करना है। शांति के वक्तव्य का तात्पर्य है किसी भी तरह की हिंसा को अनुचित मानते हुए अहिंसक जीवन जीना। यही कारण है कि बहुत से क्वेकरवादी इस हद तक अहिंसा के समर्थक और युद्ध-विरोधी हैं कि वे अपने देशों में न केवल सैनिक सेवा से इनकार कर देते-बल्कि सैनिक कामों के लिए आय कर चुकाने से भी मना कर देते हैं क्योंकि उनकी राय में यदि उनके पैसे का इस्तेमाल सैनिक कर्म या युद्ध के लिए किया जाता है तो यह प्रकारांतर से उनके द्वारा हिंसा का समर्थन होगा। ऐसे लोग अमेरिका में अपने कर का हिस्सा आंतरिक रेवेन्यू सेवा के निलंब खाते में जमा करवा देते हैं, जिसका इस्तेमाल रेवेन्यू सेवा इस वादे के आधार पर कर सकती है कि उसे सैनिक कार्यों में नहीं लगाया जाएगा। यूरोपीय मामलों की क्वेकर कौंसिल यूरोपीय संसद में इस बात के लिए प्रयासरत हैं कि युद्ध का विरोध करने वाले लोगों का कर सेना के लिए खर्च न किया जाए। क्वेकर लोग कई प्रदेशों में शांति स्थापित करने का कार्य करते रहते हैं। उनके संगठन को 1947 ई० शांति का नोबल पुरस्कार भी दिया गया है। समता के वक्तव्य के अनुसार सभी मनुष्यों में किसी भी कारण से कोई असमानता नहीं मानी जा सकती है क्योंकि आध्यात्मिक रूप से सब समान हैं-लिंग, जाति, संप्रदाय आदि किसी भी आधार पर असमानता का विरोध करने के कारण नारीवादी आंदोलनों, रंगभेद विरोधी आंदोलनों तथा गुलामी-विरोधी आंदोलनों में क्वेकरवादी हमेशा सक्रिय हिस्सा लेते रहे हैं। प्रामाणिकता या सत्य के वक्तव्य का आशय यह है कि प्रत्येक क्वेकर को अपना निजी जीवन क्वेकरवाद के सिद्धांतों के अनुसार जीना होगा। इसी तरह, सादगी के वक्तव्य का तात्पर्य है कि प्रत्येक क्वेकर को अपनी जरूरत से अधिक इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। यह एक प्रकार से जैन-अपरिग्रह के सिद्धांत से मिलता-जुलता है। इसके अंतर्गत पर्यावरण के सरोकार भी आ जाते हैं, क्योंकि यदि हम प्रकृति से उतना ही लेते हैं, जो हमारे लिए अत्यावश्यक है, तभी पर्यावरण विनाश से बचना संभव हो पाता है। क्वेकरवाद का असर बहुत गहरा रहा है और खास तौर पर यूरोप और अमेरिका में शांति, समता और पर्यावरण-संरक्षण के लिए न केवल जागरूकता फैलाने बल्कि, उनके लिए किए गए सक्रिय आंदोलनों में क्वेकरवादियों की प्रभावी भूमिका रही है। एमनेस्टी इंटरनेशनल, ग्रीनपीस, ऑक्सफेम जैसे आंदोलनों में वे सक्रिय रहे हैं। जोन एडम्स, विलियम कूपर, पॉल डगलस, एडिंगटन, क्रिस्टोफर फ्राई, हर्बट हूवर, बेन किंग्सले, फिलिप नोल बेकर, थॉमस पेन और जोसेफ टेलर जैसे कई दार्शनिक वैज्ञानिक, लेखक-कलाकार तथा अर्थशास्त्री और राजनीतिज्ञ क्वेकर आंदोलन के सदस्य रहे हैं। xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx कुमारप्पा, जे०सी० : (4 जनवरी 1892 - 30 जनवरी 1960 ई०) कुमारप्पा का जन्म तंजावूर में 4 जनवरी 1892 ई० को हुआ। पिता श्री एस० डी० कारनेलियस मद्रास सरकार के सार्वजनिक निर्माण विभाग में अधिकारी थे, जिनका स्थानांतरण होते रहता था। ईसाई समुदाय के धार्मिक-आध्यात्मिक भावना से ओत-प्रोत इस परिवार में कुमारप्पा को ईसा के प्रेम एवं अहिंसा की सीख मिली थी। प्रारंभिक शिक्षा के बाद 1913 ई० में विलायत गए और पांच वर्ष तक अध्ययन कर 1919 ई० में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1919 ई० से 1924 ई० तक बंबई में चाटर्ड एकाउंटेंट के रुप में कार्य किया। वर्ष 1924 ई० में कारनेलियस एंड डावर के नाम से स्वतंत्र आडिटिंग फर्म की स्थापना की। इसी कार्य के दौरान उनका अमेरिका अध्ययन-शोध के लिए जाना-आना होता रहा। प्रो० कुमारप्पा की रुचि वित्तीय प्रबंध में थी। 1928 ई० में अमेरिका में रहते हुए सार्वजनिक वित्त व्यवस्था और भारतीय दरिद्रता विषय पर प्रबंध तैयार किया। इस अध्ययन के दौरान उन्हें अंग्रेजों के अन्याय एवं शोषण की अनुभूति हुई और इस प्रकार कुमारप्पा की सोच राष्ट्रवाद की ओर झुक गई।

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16