Book Title: Aparigraha
Author(s): D R Mehta
Publisher: D R Mehta

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Page 11
________________ तो संपूर्ण राष्ट्र की नैतिक एकता, आत्सम्मान एवं सहनशक्ति को बढ़ाया जा सकेगा। धार्मिक दृष्टिकोण के आधार पर भी ग्रेग ने सादगीपूर्ण जीवन की महत्ता को स्पष्ट किया है। हिंदू, बौद्ध, ईसाई, इस्लाम आदि सभी धर्मों में सादगी की जीवन शैली पर बल दिया गया है। ग्रेग के अनुसार सादगीपूर्ण जीवन जीना उन लोगों के लिए अत्यावश्यक है, जो वास्तव में धर्म का पालन करते हैं, क्योंकि यह धर्म के प्रति विनम्रता का एक रूप है। जीसस के प्रवचनों का उल्लेख करते हुए ग्रेग ने कहा-मानव मात्र के प्रति प्रेम और मानवीय एकता के लिए सादगीपूर्ण जीवन एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है। प्रेम मानवीय एकता को साकार करने की भावना है और सादगीपूर्ण जीवन से प्रेम की भावना बनी रहती है। समाज में व्याप्त अमीर व गरीब की खाई को पाटने के लिए एवं दोनों वर्गों में प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए सादगीपूर्ण जीवन एक सशक्त कड़ी बन सकता है। ग्रेग मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी सादगी के महत्त्व को स्वीकार कर उसे मानसिक स्वास्थ्य का एक साधन मानते हैं। विपुल धन-संपदा की उपलब्धता निर्णयों और चुनाव की समस्या पैदा करती है, जिससे धीरे-धीरे तंत्रिका तंत्र में तनाव पैदा होने लगता है और स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। सादगी का सिद्धांत इस तथ्य को समझता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने चारों ओर के पर्यावरण से प्रभावित होता है। सादगीपूर्ण व्यक्तित्व की व्याख्या करते हुए ग्रेग कहते हैं—विश्व में सादगी से जीवन जीने वाले कई ऐसे व्यक्ति हुए हैं जिन्होंने लंबे समय तक जनमानस को आकर्षित किया। जैसे -बुद्ध, जीसस, मोहम्मद साहब, सुकरात, संत फ्रांसिस, कन्फ्युशियस, लेनिन, गांधी आदि। ग्रेग का मानना था—व्यक्तित्व का सार अन्य लोगों से भिन्नता में नहीं वरन् अन्य लोगों के साथ संबंधों में है। अपने उच्चतम रूप में यह प्रेम की क्षमता और उसका अभ्यास है। एक व्यक्ति प्रेम और सेवा से अन्य लोगों का विश्वास जीतता है तो वह उसकी खुशी एवं व्यक्त्त्वि की स्थाई सुंदरता बढ़ाने के रूप में अभिव्यक्त होता है। ग्रेग का मत है कि सादगी का यह दृष्टिकोण मूलतः आंतरिक दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। अतः सादगी का अर्थ है—कुछ निश्चित इच्छाओं को अन्य इच्छाओं में परिवर्तित कर देना और इस प्रक्रिया का सबसे अच्छा साधन है—व्यक्ति अपनी कल्पनाओं को नई इच्छाओं की ओर निर्देशित करे। सादगी को विकसित करने के लिए कुछ अन्य तत्त्वों की अपेक्षा है, जैसे-समूह के दबाव का विरोध करने की शक्ति, प्रतिकूल टिप्पणी का सामना करने की शक्ति, परस्पर संबंधों के बीच अधिक संवेदनशील, शारीरिक सुंदरता के बजाय नैतिक सुंदरता पर अधिक जोर, सहनशीलता एवं इच्छा शक्ति। अहिंसा और सादगी के परस्पर संबंध को अभिव्यक्त करते हुए ग्रेग कहते हैं कि जो लोग अहिंसा में विश्वास करते हैं, उनके लिए सादगी अत्यंत आवश्यक है। अधिक संपत्ति की आकांक्षा व्यक्ति में अन्य लोगों के प्रति ईर्ष्या, असंतोष एवं हीनता की भावना को जन्म देती है, जो कालांतर में हिंसा का रूप ले लेती है। इस प्रकार अधिक संपत्ति अहिंसा के सिद्धांत के साथ असंगत हो जाती है। यदि व्यक्ति सादगीपूर्ण जीवन जीता है तो उसके पास उतना होगा ही नहीं, जिसे खोने का डर उसे होगा। अपनी इस जीवनशैली से व्यक्ति अपनी ईमानदारी व नि:स्वार्थता से जनता पर अपना प्रभाव छोड़ेगा और अहिंसक प्रतिरोध में यह महत्त्वपूर्ण साबित होगा। रिचर्ड बी० ग्रेग का सादगीपूर्ण जीवन का चिंतन जहां संयमित जीवन शैली की महत्ता को प्रस्तुत करता है, वहीं उनका अहिंसात्मक प्रतिरोध पर चिंतन ग्रेग की अहिंसा पर व्यापक दृष्टि को प्रस्तुत करता है। गांधी ऐसे व्यक्ति हुए जिन्होंने अहिंसात्मक प्रतिरोध के सिद्धांत को विकसित किया। गांधी ने संगठित एवं सामूहिक रूप से कठिन परिस्थितियों में अहिंसक प्रतिरोध का प्रयोग कर इस सिद्धांत के विस्तार को सिद्ध कर दिखाया। अहिंसक प्रतिरोध को स्पष्ट करते हुए ग्रेग कहते हैं : जब किसी व्यक्ति पर दूसरे द्वारा हिंसा या बल का प्रयोग किया जाता है तो वह भयभीत नहीं है। वह हिंसा द्वारा आक्रमक को कष्ट पहुंचाने की अपेक्षा स्वयं कष्ट सहन करके हिंसा का नैतिक विरोध करता है। यही नैतिक विरोध अहिंसक प्रतिरोध कहलाता है। जापान में एक विशेष प्रकार की जु-जुत्सु नामक कुश्ती होती है जिसमें विरोधी शारीरिक बल खर्च नहीं करता। वह आक्रमक को बल प्रयोग करने देता है और अंत में उसे थका कर हरा देता है। अहिंसक प्रतिरोध भी इस प्रकार का एक नैतिक द्वंद्व है। इसमें आक्रांत व्यक्ति की अहिंसा और सद्भावना के कारण आक्रमक की अनैतिक शक्ति थक जाती है। अहिंसात्मक प्रतिरोध में आक्रामक के शारीरिक बल प्रयोग को जीतने के लिए उच्च बुद्धि के साधन का प्रयोग किया जाता है। अहिंसात्मक संघर्ष का उद्देश्य विरोधी को हानि पहुंचाना, दबाना, अपमानित करना अथवा उसकी इच्छा को कुचलना नहीं है। अहिंसात्मक प्रतिरोध का उद्देश्य विरोधी का हृदय-परिवर्तन कर उसकी धारणा और विचारधारा को बदलना होता है, जिससे वह अहिंसक प्रतिरोधी के साथ मिलकर संतोषजनक हल निकालने में सहयोग दे सके। __पूंजीवाद से व्याप्त अशांति के संबंध में ग्रेग अहिंसात्मक प्रतिरोध की भूमिका को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि अहिंसात्मक प्रतिरोध हिंसा की अपेक्षा उच्चतर धारणाओं को उत्पन्न करता है। यह अपने विरोधियों और दर्शकों पर अपना जबरदस्त असर डालकर पूंजीवाद की पुरानी धारणाओं को दूर करता है तथा नवीन एवं उच्च मनोवृत्तियों को पुनर्जीवित करता है। फलस्वरूप, वे धारणाएं नष्ट हो जाएंगी, जिससे शासक वर्ग को बल मिलता है। ग्रेग के मतानुसार समाज में व्याप्त वर्ग-भेद को न तो हिंसा द्वारा और न ही शासक वर्ग की सत्ता छीन लेने से समाप्त किया जा सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि शासक वर्ग के विचारादर्श, धारणाओं, मान्यताओं एवं उन दृष्टिकोणों को परिवर्तित किया जाए जिन पर उनका लोभ और अभिमान अवलंबित है और यह केवल अहिंसात्मक प्रतिरोध से ही संभव है। अतः रिचर्ड बी० ग्रेग का चिंतन अपरिग्रह एवं अहिंसा-शांति के क्षेत्र में एक विशिष्ट स्थान रखता है। ग्रेग की सादगीपूर्ण (11)

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