Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Priya Jain
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 2
________________ अनुयोगद्वार सूत्र 383 है वैसे ही आगम मंदिर भी नन्दी और अनुयोगद्वार रूप शिखर से अधिक जगगाता हैं । नन्दी और समवायांग में जो आगमों का परिचय दिया है उसमें आचारांग आदि आगमों के संख्येय अनुयोगद्वार हैं, यह उल्लेख है। भगवती सूत्र में अनुयोगद्वार सूत्रगत अनुयोगद्वार के चार मूलद्वारों में से नयविचारणा का विस्तृत वर्णन किया है। इस संक्षिप्त संकेत से यह कहा जा सकता है कि भगवान महावीर के समय में सूत्र को व्याख्या करने की जो विद्या थी, उसका समावेश करने वाला सूत्र अनुयोगद्वार है । प्रस्तुत आगम में व्याख्येय शब्द का निक्षेप करके उसके अनेक अर्थों का निर्देश कर, उस शब्द का प्रस्तुत में कौनसा अर्थ ग्राह्य है, यह शैली अपनायी गई है। इसी शैली का अनुसरण वैदिक और बौद्ध साहित्य में भी किया गया हैं । अनुयोग और अनुयोगद्वार एक चिन्तन शब्द तथा अर्थ के योग को अनुयोग कहते हैं। 'अनु' उपसर्ग और 'योग' शब्द से 'अनुयोग' बना है। सूत्र या शब्द के अनुकूल, अनुरूप या सुसंगत संयोग अनुयोग हैं। अनुयोग, नियोग, भाषा, विभाषा और वार्तिक ये पांचों पर्यायवाची और अनुयोग के एकार्थवाची नाम हैं। अनुयोग की निरुक्ति में सूची, मुद्रा, प्रतिघ सम्भवदल और वर्तिका - ये पाँच दृष्टान्त गिनाये हैं। लकड़ी से किसी वस्तु को तैयार करने के लिए पहले लकड़ी के निरुपयोगी भाग को निकालने के लिए उसके ऊपर एक रेखा में जो डोरा डाला जाता है, वह सूची कर्म है। उस डोरे से लकड़ी के ऊपर जो चिह्न किया जाता है वह मुद्रा कर्म है। इसके बाद उसके निरुपयोगी भाग को छांटकर निकाल दिया जाता है- इसे प्रतिघ कर्म कहते हैं। फिर इस लकड़ी के आवश्यकतानुसार जो भाग कर दिये जाते हैं वह सम्भवदल कर्म है और अन्त में वस्तु तैयार करके उस पर पालिश आदि कर दी जाती है, वह वर्तिका कर्म है । इस प्रकार इन पांच कर्मों से जैसे विवक्षित वस्तु तैयार हो जाती है, उसी प्रकार अनुयोग शब्द से भी आगमानुकूल सम्पूर्ण अर्थ का ग्रहण होता है । द्रव्यसंग्रह' में अनुयोग, अधिकार, परिच्छेद, प्रकरण इत्यादि एकार्थवाची शब्द गिनाये हैं और कसायपाहुड़' में अनुयोगद्वार पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि अर्थ के जानने के उपायभूत अधिकार को अनुयोगद्वार कहते हैं। पंडित सुखलाल जी अनुयोग का अर्थ व्याख्या या विवरण करते हैं और द्वार का अर्थ प्रश्न करते हैं। इस प्रकार प्रश्न या प्रश्नों के माध्यम से विचारणा द्वारा वस्तु के तह तक पहुंचने को अनुयोगद्वार कहते हैं। स्याद्वादमंजरी में प्रवचन - अनुयोग रूपी महानगर के चार द्वार बताये हैं- उपक्रम, निक्षेप, अनुगम और नय । तत्त्वार्थाभिगम सूत्र में तत्त्वों के विस्तृत ज्ञान के लिए निर्देश, स्वामित्व. साधन, अधिकरण आदि चौदह अनुयोगों या विचारणा द्वारों का निर्देश किया है। तत्वार्थ सूत्र में ही नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव से तत्वों का न्यास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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