Book Title: Anusandhan 2014 08 SrNo 64
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 12
________________ पद्य ८९(९०)मां व्याकरणना प्रयोगो द्वारा 'यथासङ्ख्य' अलङ्कारने केवो सरस उपसाव्यो छे ! तो गुरुना शास्त्राभ्यासने वर्णवता कविनी कल्पना यथेच्छ केवी विहरे छे ते पण जोवा जेवू छे : सरस्वती देवीनी प्रतिमामां एक हाथमां पोथी होय छे. देवीए शा माटे पोथी राखवी पडे ? तो के आ आचार्य समग्र शास्त्र-समुद्रना पारगामी होई माराथीये अधिक मतिवैभववाळा लागे छे. मारे तेमनाथी पाछा आगळ नीकळवू होय तो तेमनाथीय अधिक भणवू पडे. आम विचारीने देवीए हाथमां पोथी राखी छे जाणे ! (९६). ___पद्य १०२ (१०३)मां हेमाचार्य करतां कवि गुरु रत्नसूरिने श्रेष्ठ वर्णवे छे, अने 'हेम(सोना) करतां रत्न वधु मूल्यवान् होय' एवी लोकोक्तिनो आश्रय पण ले छे. भक्ति, प्रेम अने युद्ध - त्रणमां कांई पण मान्य ज होय, ए न्याये आ वात लेवी घटे. बाकी आवी सरखामणी ज अनुचित बनी रहे. स्वगुरुनी गुणगाथा गावामां क्यांक पूर्वाचार्य- अवमूल्यन न थई जाय ते पण ध्यानमा लेवु जरूरी छे. . गङ्गा आकाशमांथी नीचे केम आवी, अने ते निम्नगा केम थई गई तेनो खुलासो कवि आवी कल्पना द्वारा आपे छे : गुरुनी वाणीना तरङ्गोना वेग सामे स्वर्गगङ्गा हारी गई. तेथी शरमिंदी बनीने ते नीचे-धरती उपर पछडाई, अने ते दहाडाथी ते निम्नगा-अधोगामी बनी रही ! (१०७) आवी तो विधविध कल्पनाना वैभवथी सभर छे आ पत्र ! आने एक पत्रकाव्य के लघुकाव्य गणवो जोईए. में आ पछीनो पत्र, एक ज कर्ता द्वारा रचवामां आवेला विविध पत्रांशोना संकलन जेवो पत्र छे. अन्तिम अंशना पद्य ४मां जोवा मळता 'विजयप्रभ' एवा नामने आधारे, आ बधां काव्यो गच्छपति विजयप्रभसूरिने उद्देशीने लखेला के लखवाना पत्रथी सम्बद्ध होय, एम मानी शकाय. १६४ पद्यप्रमाण आ लेखपद्धतिना श्लोकोमा कवितुं पाण्डित्य सोळे कळाए खील्युं छे. __ पार्श्वनाथना मस्तक पर ७ फणा धरावता नागराज जोवा मळे छे. ते शा माटे ? ते शो संकेत आपे छे ? आ समजाववा माटे, कवि, तेने माटे १० करतां - वधु कल्पनाओ करी बतावे छे. पद्य १ थी १६मां आ बधी कल्पनाओ जोवा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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