Book Title: Anusandhan 2009 09 SrNo 49
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 8
________________ सप्टेम्बर २००९ अज्ञातकर्तृक: शब्दसञ्चयः ।। सं. मुनि धर्मकीर्तिविजयः प्रवर्तक श्रीकान्तिविजय जैन शास्त्रसंग्रह-श्री आत्माराम जैन ज्ञानमन्दिर वडोदरा- नरसिंहजीनी पोलमांथी शब्दसंचय नामनी ३ हस्तप्रतो प्राप्त थई. आ ३ प्रतो सामे राखी प्रस्तुत कृतिनुं सम्पादन कर्यु छे. अद्यावधि शब्दरूपावली अनेक प्रकाशित थई चूकी छे. तथापि आ कृतिनुं महत्त्व ए छे के कर्ताए शब्दनां रूपोनी सिद्धि माटे एक ज स्थाने सिद्धहेमव्याकरण तथा कातन्त्रव्याकरणनां सूत्रोनो उपयोग कर्यो छे. स्वतन्त्रपणे सिद्धहेमव्याकरणनां सूत्रोनो उपयोग थयो होय, कोईक स्थाने कातन्त्र व्याकरणनां सूत्रोनो उपयोग तो कोईक स्थाने पाणिनीव्याकरणनां सूत्रोनो उपयोग थयो होय तेवू जोवा मळे छे. परंतु एकज स्थाने सिद्धहेमव्याकरण अने कातन्त्रव्याकरणनां सूत्रोनो उल्लेख होय तेवी कृति भाग्ये ज जोवा मळे. प्रस्तुत कृतिमां बन्ने व्याकरणनो उपयोग करायो छे. बीजुं एक कारण ए छे के आ कृति ५२१ वर्ष पूर्वे लखायेल छे. ते वखते पाणिनि, कातन्त्र, सारस्वत, भोज, ऐन्द्र, सिद्धहेम-इत्यादि अनेक व्याकरण प्रचलित हतां. पूर्वे जैनोमां सिद्धहेम, कातन्त्र तेमज सारस्वत व्याकरण विशेषे प्रचलित हतां. जो के आजे तो सिद्धहेम अने पाणिनि सिवायना व्याकरणनो उपयोग ज रह्यो नथी. अने तेथी ज सिद्धहेम अने कातन्त्र व्याकरणना सूत्रोना उल्लेखयुक्त कृति मळे ते महत्त्वनी वात बने छे. प्रस्तुत कृतिना सम्पादनमा ३ हस्तप्रतोनो उपयोग करायो छे. तेमां शब्दसंचय, पत्र-१९-आ प्रतने A संज्ञा आपवामां आवी छे. आनी विशेषता ए छे के शब्दनां रूपोनी सिद्धि माटे विशेषे टिप्पणरूपे तो कुत्रचित् प्रतिमध्ये ज सिद्धहेम तथा कातन्त्र व्याकरणना सूत्रोनो उपयोग करवामां आवेल छे. आ कृति कर्ताए स्वहस्ते लखी छे ते महत्त्वनी वात छे. प्रत्यन्ते उल्लेख मळे छे - संवत १५४४ वर्षे भाद्रवा सुदि पूदिने श्रीपूर्णिमापक्षे श्रीश्रीभुवनप्रभसूरि वा० पूर्णकलशस्वहस्तेन लिखितम् । आ कृतिना कर्ता विषे अन्य कोई माहिती उपलब्ध थती नथी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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