Book Title: Anusandhan 2009 09 SrNo 49 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 5
________________ श्रद्धानो अंश पण खण्डित न थाय; वस्तुतः तो आ प्रकारना बौद्धिक आटापाटाथकी श्रद्धा वधु सुदृढ बने छे. अलबत्त, ते माटे चित्तनुं सहज औदार्य, विशाल चिन्तन अने भिन्न मतने सहन करवानी क्षमता होय ते जरूरी गणाय. संकुचित वलण होय तो तेवाने सामो विचार 'मिथ्यात्व' ज भासे, अने ते रीते विचारनारो मिथ्यात्वी लागे. दृष्टिदोषनो शो इलाज ? | 'योगशतक' ए श्रीमान् हरिभद्राचार्यनो प्रसिद्ध योग-ग्रन्थ छे. तेमां ५०मी गाथा 'चतुःशरण प्रकीर्णक'नी गाथा छे. तेमां 'चतुःशरण'नी व्याख्या करतां आचार्यश्री लखे छे के : 'चतुःशरणगमनम्' - अर्हत्-सिद्ध-साधु-केवलिप्रज्ञप्तधर्मशरणगमनम्, आचार्योपाध्याययोः साधुष्वेवान्तर्भावात्' । अर्थात्, अरिहंत, सिद्ध, साधु अने धर्म - ए ४ना शरणे जवानुं छे. आचार्य अने उपाध्याय ए बे तो 'साधु'मां ज समाई जाय छे. आ वांच्युं त्यारे आचार्यो, ज्ञानीओ तथा तेमनी नयदृष्टि प्रत्ये अपार आदर उपज्यो. परमेष्ठी पांच छे, तेमने माटेनां, नवकारनां पद पण पांच प्रसिद्ध छे, ए जाणता होवा छतां, शास्त्रकारोए चार ज शरण वर्णव्यां, अने व्याख्याकारोए नयदृष्टिए तेनो केवो सरस उकेल आप्यो ! . आ ज रीते, संशोधन द्वारा प्राप्त थतां तारणोने तेमज परम्पराप्राप्त पदार्थोने नयदष्टिए तपासवामां आवे, तो ते बन्ने परम्पर विरुद्ध लागवाने बदले एकमेकनां पूरक थाय, तेवी पूरी सम्भावना छे. अने हा, आम करवानी साथे साथे, आपणे सर्वज्ञ नथी ए वात सतत स्मरणमा राखवी जोईए. - शी० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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