Book Title: Antrik Parshwanath Chand
Author(s): Rasila Kadia
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ 66 अनुसंधान-२९ छंद चालि अवदात जेहनो जगत्र जाणे गुण वखाणे सुरधणी परसाद प्रभुनें प्रगट परभव पामिओ प्रभुपदफणी महिमा वधारे विधन वारे करे सेवा अति घणी तुम्ह नाम लीनो रहे भीनो अवर देवह अवगणी ॥१०॥ नर नाथ कोडि हाथ जोडि, मान जोडि इम कहे प्रभु नाथ चरणे जिके सरणे रहे ते परपद लहे अति जेह उतकट विकट संकट निकट नावे ते वली भय आठ मोटा निपट खोटा दूरथी जाइं टली ॥११॥ छंद चालि जे रोग भयंकर दुष्ट भगंदर कुष्ट खय नख सखालि हरखा अंतर्गल वलि अमल ज्वर विषमज्वर जाई तास दीसे अति माठा वलि व्रण चाठा नाठा जाई तेह तुम दरिसण सामी शिवगति गामी चामीकर सम देह ॥१२॥ जलनिधि जलगज्जे प्रवहण भज्जे वज्जे वायु कुवाय थरहर तिहां धुज्जे हरिहर पुज्जे किज्जे बहुल उपाय मनमांहि कंपे हइहइ जंपे कुणहि किंपि न थाय इणे अवसर भावे प्रभुने ध्यावे पावे ते सुख थाय ॥१३॥ झडफे तरुडाला पांनका जाला काला धूम कलोल उच्च लता देखी जाय उवेखी पंखी पड्य दंदोल पंखी जन नासे भरीआ सासे त्रासे धूजे तेह पंडिआ तिण ठामे प्रभुने नामें कुसलें पामें गेह ॥१४|| फणनें आटोपे मणिधर कोपे लोपे जे वलि लीह धसमसतो आवे देखी धावे लबकावे दो जीह बोहे जन जातां देखी रातां लोअण तस विकराल कीधे गुणगानें प्रभुनें ध्याने अहि थाइं विसराल ॥१५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10