Book Title: Antgada Dasanga Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 3
________________ प्रकाशकीय 32 आगमों में अंग शास्त्रों की प्रधानता वही है। अंग शास्त्रों में जहाँ उपासकदेशांम सूत्र में श्रावक की साधना देवगति का कारण बनी है वहीं आठवें अंग शास्त्र अंतगड़देसाज सूत्र में वर्णित 90 आत्माओं की साधना मोक्ष का हेतु बनी है। अंतगड़ सूत्र में वर्णित ज्ञान व साधना से यह ज्ञात होता है कि मुक्ति प्राप्ति में ज्ञान की न्यूनाधिकता बाधक नहीं होती है अपितु ज्ञान, देर्शन, चारित्र के सम्यक् पालन से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। अंतगड़सूत्र में वर्णित आत्माओं में से किसी ने 5 समिति 3 गुप्ति का अध्ययन किया, तो किसी ने 12 अंगों का और किसी ने 14 पूर्वो का अध्ययन किया, वहीं किन्हीं साधकों ने लम्बे समय तक संयम पर्याय का पालन किया तो गजव्सुकुमाल जैसे साधकों ने अहोरात्रि का संयम पालन किया। यदि तप का वर्णन देखा जाये तो साधकों ने गुणवत्न संवत्सव, 12 भिक्षु प्रतिमा, लघु सर्वतोभद्रे, महासर्वतोभद्र आदि तप करके मुक्ति का वरण किया। मजसुकुमाल जैसे साधक ने एक रात्रि की भिक्षु प्रतिमा जैसे तप का पालन करके मुक्ति की मंजिल प्राप्त की। इन्हीं सब विशेषताओं को लिये हये इस अंतगड़देसाङ्ग सूत्र की विस्तृत जानकारी तो इसका आद्योपांत स्वाध्याय करने पर ही प्राप्त होती है। पर्युषण पर्व में भी इसका वाचन करने के पीछे यही लक्ष्य रहता है कि हम भी उन साधकों की तरह ज्ञानदेशन-चारित्र व तप की यथाशक्ति सम्यक् पालना करके मोक्ष रूप शुद्ध अवस्था को प्राप्त करें। पूर्व में प्रकाशित अंतगड़ सूत्र में मूल के सामने संस्कृत छाया व भावार्थ विवेचन सहित प्रस्तुत करने के पीछे आचार्यप्रवर श्री हस्तीमलजी म.सा. का यही उद्देश्य था कि सुज्ञ श्रावकगणों को स्वाध्याय करते हये सभी विषय-वस्तु का एक साथ

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