Book Title: Antgada Dasanga Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 19
________________ {XIX} अधिकार में इसका रूप इस प्रकार उपलब्ध होता है-“पहले महीने एकान्तर उपवास का पारणा करना, दूसरे महीने में 2-2 उपवास का पारणा करना, तीसरे महीने में 3-3 उपवास का पारणा करना, चौथे महीने में 4-4 उपवास का पारणा, पाँचवें महीने में 5-5 का, छठे महीने में 6-6 का, इस प्रकार बढ़ते हुए 16वें महीने में 16-16 उपवास का पारणा करना, दिन में उत्कट आसन से आतापना लेना और रात में वीरासन से खुले बदन डांस आदि के परीषह सहना ।" यह इस तप का स्वरूप बताया गया है। तीसरा तप है रत्नावली । इसमें एक उपवास से लेकर ऊँचे 16 तक की तपस्या चढ़ाव-उतार से की जाती है । मध्य में बेले और आदि अन्त में उपवास, बेला, तेला की तपस्या की जाती है। चारों परिपाटियों में चार वर्ष 3 मास और 6 दिन तप के और 352 दिन पारणे के होते हैं। चौथा तप है कनकावली। रत्नावली के समान ही इसमें भी उपवास से 16 तक तप का चढ़ाव-उतार होता है। अन्तर केवल इतना है कि इसमें 3 स्थानों पर रत्नावली के षष्ठ तप के बदले अष्टम तप किया जाता है | चारों परिपाटियों में 4 वर्ष 9 मास और 26 दिन तप के और 352 पारणे होते हैं । एक परिपाटी में 1 वर्ष 2 मास और 14 दिन तप के तथा 88 पारणे होते हैं। ___ पाँचवाँ तप है लघुसिंहनिष्क्रीड़ित । इसमें जैसे शेर आगे पीछे कदम रखता है, वैसे ही उपवास से लेकर 5 तक की तपस्या में आगे बढ़ना और पीछे हटना, इस प्रकार 4 परिपाटियाँ की जाती हैं। एक परिपाटी में 5 मास और 4 दिन के तप एवं 33 पारणे होते हैं। चार परिपाटियों में 1 वर्ष 8 मास 16 दिन के तप और 132 पारणे होते हैं। छठा तप महासिंह निष्क्रीड़ित है। इसमें ऊँचे से ऊँचे 16 तक का तप होता है । साधना काल 6 वर्ष 2 मास और 12 दिन में 5 वर्ष 6 मास और 8 दिन तप के तथा 244 पारणे होते हैं। सातवाँ तप सप्त-सप्तमिका भिक्षु प्रतिमा, आठवाँ अष्ट-अष्टमिका भिक्षु प्रतिमा, नवमाँ नवनवमिका भिक्षु प्रतिमा और दशवाँ दश-दशमिका भिक्षु प्रतिमा है । ये चारों तप साधुओं की अपेक्षा से कहे गए हैं । इन चारों प्रतिमाओं में भोजन की दत्ति की अपेक्षा तप का आराधन किया जाता है । सप्त-सप्तमिका में प्रथम सप्ताह में एक दत्ति भोजन की व एक दत्ति जल की, दूसरे सप्ताह में दो दो, यावत् सातवें सप्ताह में सात दत्ति भोजन की और सात ही जल की ग्रहण की जाती है । इस तप के 49 दिन होते हैं । ऐसे अष्ट-अष्टमिका के 64 दिन, नव-नवमिका के 81 दिन और दश-दशमिका के 100 दिन होते हैं । अष्ट-अष्टमिका में दिन के प्रमाण से प्रथम अष्टक में 1 दत्ति और आठवें में आठ दत्ति इस प्रकार नव नवमिका में नव दिन और दशमिका में दश दिन से एक-एक दत्ति बढ़ानी चाहिए।

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