Book Title: Antgada Dasanga Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 9
________________ {IX} अंतगड़सूत्र से प्राप्त शिक्षाएँ व चिंतन : इस सूत्र का एक-एक अध्ययन जीवन को ऊँचा उठाने की सत्प्रेणा व सत्शिक्षाओं से भरा हुआ है, हम इन शिक्षाओं से अपनी आत्मा को भावित करने हेतु चिंतन (संकल्प) कर सकते हैं: (1) मोक्ष प्राप्ति का राजमार्ग है संयम। सभी 90 आत्माओं ने संयम पथ को अंगीकार करके मुक्ति को प्राप्त किया है। चिंतन-इस जीवन में संयम ले सकूँ तो सर्वश्रेष्ठ है अन्यथा श्रावक धर्म की आराधना करता हुआ नियन्त्रित व मर्यादित जीवन जीऊँ। (2) सभी साधकों ने यथाशक्ति ज्ञानाराधना की। हमें उपलब्ध आगम व अन्य साहित्य का प्रतिदिन शक्ति के अनुसार स्वाध्याय करके ज्ञानाराधना करनी चाहिए। चिंतन-ज्ञान अन्तर्चक्षु हैं, जिन्हें स्वाध्याय से उद्घाटित किया जा सकता है। अत: मैं प्रतिदिन स्वाध्याय करूँगा। तन रोगों की खान है, धन भोगों की खान। ज्ञान सुखों की खान है, दुःख खान अज्ञान।। (3) 90 ही आत्माओं ने अस्नान व्रत को धारण किया। शरीर अनित्य है, अशुचिमय है, अशुचि को पैदा करता है, अशाश्वत आवास है, दु:ख व क्लेशों का पात्र है। इस मल-मूत्र की शैली को कितना भी नहलाओं यह तो अपवित्र ही रहने वाला है अत: इस शरीर को सजाने-संवारने की अपेक्षा इससे को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। चिंतन-प्रतिदिन स्नान नहीं करूँगा। पानी की एक बूंद से असंख्यात जीव हैं। मैं अपने शरीर को अच्छा दिखाने के लिए इतने जीवों की हिंसा कैसे कर स भित तत्त्व (4) जीवन में जो भी अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति आती है, वह अपने ही पूर्वकृत कर्म का परिपाक है। उसमें निमित्त बनने वाले को दोषी नहीं मानकर सहायक मानना चाहिए। साहिज्जे दिण्णे। चिंतन-इसने मुझे गुस्सा दिलाया, यह सोच ठीक नहीं है। (5) घर-परिवार में सेवारत कर्मचारियों को अपना कौटुम्बिक' मानना चाहिए। कोडुंबियपुरिसे। उन्हें अच्छे संबोधन से बुलाना चाहिए-देवाणुप्पिया आदि से। चिंतन-किसी के साथ अरे, तू, ऐ आदि हल्के शब्दों का प्रयोग नहीं करूंगा। (6) श्रमण निर्ग्रन्थों को प्रासुक और एषणीय सुपात्रदान देने हेतु भोजन के समय घर पर सूझता रहना चाहिए। चिंतन-भोजन के समय (कम से कम एक टाइम) घर पर सूझता रहूँगा। (7) प्रतिदिन घर में माता-पिता व बड़ों को प्रणाम करके उनकी साता-पूछना चाहिए उन्हें कोई भी आवश्यकता हो तो उसे सर्वप्रथम पूर्ण करना चाहिए। चिंतन-प्रतिदिन माता-पिता को प्रणाम कर उनके पास कुछ समय बैलूंगा।

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