Book Title: Antarrashtriya Samasyao ka Samadhan Syadwad Author(s): Ajitmuni Publisher: Z_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf View full book textPage 3
________________ अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान : स्यादवाद 343 तुम्हारे पिता के भाई हैं / तुम्हारे पिता ने ठीक ही तो कहा-यह तो मेरे भाई हैं / तुम्हारी काकी ने कहा-यह मेरे पतिदेव हैं। तुम्हारी काकी को तुम्हारे पिता भाभी कहते हैं। तो तुम्हारी काकी के लिए यह पति भी तो हैं / और"""इन्होंने कहा, यह मेरा भानजा है। तो यह तुम्हारी दादी के भाई हैं। अतः इनके मामा है, तभी तो इनको मानजा कहा। -तो कहो ! कौन कहाँ झूठा है या सच्चा है ? तुम अपनी-अपनी दृष्टि से ही सच्चेमठे हो। दूसरे की दृष्टि को भी कृपा करके परखो। तुम्हारी 'ही' बात सत्य है तो दूसरे की 'भी' बात किसी अपेक्षा से सत्य है। अपनी बात को ही सत्य प्रमाणित करना और दूसरे को संसार का सबसे बड़ा झूठा कहना, इसमें मानवीय मर्यादा की शोभा नहीं है। तुम यह भी जान लो, कि तत्त्व तो अनन्त धर्म संयुक्त है। इस प्रकार व्यक्ति, घर, समाज, देश एवं अन्तर्राष्ट्रीय जटिल गुत्थियों को यू पलक झपकते सहज ही हल किया जा सकता है। बस ! मेरी इस 'ही' और 'भी' के मैत्री-सिद्धान्त को अपना लोगे, तो फिर सारे संघर्ष ही समाप्त हो जायेंगे।" स्याद्वाद की इतनी गहनीय बात को सरलतम रूप से समझ सारा परिवार ठहाके लगाने लगा / सभी अपनी मनचीती बात के गम्भीर रहस्य को समझ चुके थे / स्याद्वाद अपनी समाधान कला के मुक्त-वितरण पर मन ही मन अतीव प्रसन्न था। स्याद्वाद की बेलाग स्पष्टोक्ति पर मतभेदों एवं संघर्षों का समुदाय लज्जित सां दृष्टिगत हुआ। समन विश्व के सम्मुख दिशा-ज्योति की नवचेतना अँगडाइयां लेने लगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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