Book Title: Antarrashtriya Samasyao ka Samadhan Syadwad
Author(s): Ajitmuni
Publisher: Z_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf

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Page 1
________________ अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान : स्यादवाद श्री अजित मुनिजी 'निमल' एक दिन स्याद्वाद ने जगति के विचरण का निश्चय किया। प्रत्येक यात्रा किसी भी विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति को लेकर की जाती है। स्याद्वाद ने सोचा "क्यों न विश्व की एक परिक्रमा कर ली जाये? जिससे कि हर स्थान के व्यक्तियों की समस्या को निकट से देखने का सहज ही अवसर प्राप्त होगा एवं उनके आपसी व्यवहार को जानने का लाभप्रद परिचय भी मिलेगा। अतः घुमक्कड़ी प्रारम्भ कर ही हूँ!" । ......"और स्याद्वाद का अनुभव विहार प्रारम्भ हो गया। जहाँ-जहां पर स्याद्वाद गया, उसने आश्चर्य विस्फारित नेत्रों से देखा “पिता से पुत्र उलझ रहा है। भाई से भाई लड़ रहा है। सासू-बहू मार-पीट कर रही हैं। मुकदमे हो रहे हैं। हत्याओं का आतंक फैलाया जा रहा है। दैनंदिन विनाश-षडयत्र की योजनाएं अट्टहास कर रही हैं। एक-दूसरे के अस्तित्व को जड़ से समाप्त करने के लिए निरंतर घातकतम शस्त्रास्त्रों का अंबार लगाया जा रहा है। केवल "मैं" और "मैं" को प्रमाणीकरण एवं साक्ष्य-साधन जुटाने में दिन-रात के श्रम की घोर उपासना चल रही है। काल पुरुष के रूप में भद्रता का मुखोटा लगाये भरमाने के लिए धमाचौकड़ी मची हुई है। एक दूसरे के अधिकार बलात् छीने जा रहे हैं। आकांक्षाओं को रौंदा जा रहा है। मार्ग से बरबस हटाकर फैका जा रहा है, मसला और तडपाया जा रहा है, भड़काया जा रहा है........" घबराये से स्वर में स्याद्वाद के मन की पीड़ा कसमसाने लगी-“पर""ये-ऐसा क्यों...... किसलिए किया जा रहा है ? ये.."ये सर्वत्र यहाँ-वहाँ, इधर-उधर चहुँ ओर अराजकता का तांडव नृत्य क्यों हो रहा है ? मेरी तो समझ में यह सब कुछ नहीं आ रहा है ? मुझे........ हाँ !.."हाँ ! मुझे क्या क्या करना चाहिये? मैं क्या कर सकता हूँ?" स्याद्वाद ने समाधानदिशा के सन्दर्भ में शनैः-शनः स्वस्थ एवं शांत चित्त लाभ किया। वाणी पुनः दृढ़ता के साथ गूंज उठी-"यह विश्व के मानव समझते क्यों नहीं हैं ? ठीक है ! अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा। मैं बताऊँगा इन्हें, कि समस्याएँ इस प्रकार निपटाई जाती हैं।" विश्व की दुर्दशा स्याद्वाद के करुणा पूरित मन से देखी नहीं गयी। उसे संघर्ष कभी रुचता ही नहीं था। मतभेद से भी वह कोसों दूर रहा । विवाद किसे कहते हैं ? यह कभी किसी ने उसे सिखाया ही नहीं और न उसने कभी सीखने का प्रयास किया। संसार को स्वर्ग निर्माण करने की मधुर कल्पना के वशीभूत हो, मानवों की वीमत्स मनोवृत्तियों की शृखला को तोड़ने के लिए समग्र मतभेदों और संघर्षों की जमात को साहस के साथ न्यौता अंततः दे ही दिया। स्याद्वाद ने ललकारते हए गम्भीर घोष किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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