Book Title: Antarrashtriya Samasyao ka Samadhan Syadwad
Author(s): Ajitmuni
Publisher: Z_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf

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Page 2
________________ ३४२ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ "ओ संसार के तुफैलियो ! आयो ! आमओ ! मेरे पास आओ ! मैं तुम सभी की भलाई के लिए फार्मूले बताता हूँ। अरे ! जरा ध्यान से सुनो तो सही। तनिक थमो, यूं बेतहाशा कहाँ भागे जा रहे हो? देखो ! मैं परस्पर बौद्धिक उपयोग की कला को आज उजागर करता हूँ। तुम यह तो जानना ही चाहोगे, कि दोनों में से कौन-कितना सच्चा या झूठा है ? क्यों, ठीक बात है न? इसको तुम स्वयं पा सको। मैं ऐसा विवेक का जादुई पैमाना तुमको दे देता हूँ। अच्छा तो लो! एक परिवार का एक महत्त्वपूर्ण-वरिष्ठ व्यक्ति अपने घर के आंगन में आकर खड़ा हा। उसका परिवार वास्तव में भरा-पूरा था। बहिन-बेटियाँ भी आई हई थीं। एक बच्चा उस व्यक्ति को आया जानकर लिपटने को दौड़ा और बोला"ओ-हो-हो ! काका आये।" "अरे, चल, परे हट, मेरे मामा आये।" "नहीं-नहीं, ये मेरे नाना है।" "क्या कहा, नाना आये ? नहीं, यह तो मेरे भाई है।" "अच्छा ! बेटा ! तू आ गया ?" "ऊ-हूँ ! अरे भई ! यह तो मेरे पिताजी हैं।" "तुम सब पागल हो। यह तो मेरे पतिदेव हैं।" "तुम सब झूठे हो। यह तो मेरा भानजा है।" सभी ने यह सुना और बस ! एक अच्छा खासा हंगामा मच गया। एक-दूसरे को गाली देने लगे। अपनी-अपनी आवाज में चिल्लाने लगे "नहीं-नहीं मामा !......"नहीं काका !......."हट, काका........ बेटा !......"नाना !...." कोई किसी की नहीं सुनता, अपनी ही कहते जा रहे हैं। मैं वहां पहुंच गया और कड़कती आवाज में बोला"ठहरो ! यह क्या शोर मचा रखा है ? सब चुप हो जाओ!" जान-लेवा तुफान थम गया। आँगन में एकदम निस्तब्धता छा गई। वातावरण सुन्दरशांत हो गया। मैंने कहा "तुम सब व्यर्थ ही क्यों झगड़ रहे हो? जरा अपनी बात के साथ ही दूसरे की बात की गहराई भी समझने का प्रयास करो। तुम्हारे इस अपने मताग्रह या मनाग्रह के स्वार्थ ने आपस में ही बखेडा खड़ा कर दिया। सत्याग्रह में विवेक का संगम है। ........ अच्छा ! अब तुम्हारे झगड़े की पहेली सुलझा दें। हां ! तुमने कहा-मेरे काका हैं। ठीक है ! यह तुम्हारे तो काका 'ही' हैं, पर भाई! जरा सोचो ! इनके यह मामा 'भी' तो हैं । यह तुम्हारे पिता के भाई हैं, तो इनकी माता के भी भाई है । यह तुम्हारे लिए काका हैं, सभी के लिए तो नहीं न । और हाँ ! यह पिता भी है तो इनके पुत्र के लिए, सभी के लिए नहीं। तुम इन्हें पिता नहीं कहोगे, क्योंकि यह तुम्हारे पिता नहीं।"इन्होंने नाना कहा, तो यह इनकी माता के पिता हुए। ........देखो ! इन्होंने इनको बेटा कहा । तो यह तुम्हारे काका के पिता है, और तुम्हारे नाना के पिता हैं । तुम्हारे तो पिता के पिता हैं और तुम्हारी माता के पिता हैं। बोलो ! तुम्हारे काका के पिता और पिता होने से तुम इन्हें दादा कहोगे न ! यह तुम्हारे काका है अर्थात् यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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