Book Title: Antardvand
Author(s): Parmatmaprakash Bharilla
Publisher: Hukamchand Bharilla Charitable Trust Mumbai

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Page 27
________________ प्रेरक वाक्य • जिसप्रकार भौतिक मलिनता व गर्मी के शमन हेतु हम अपने घर में स्नानागार बनाते हैं, उसीप्रकार मानसिक मलिनता व मनस्ताप के शमन हेतु एक स्वाध्याय कक्ष भी अपने भवन में अवश्य होना चाहिए। हम सारे जगत को जानते हैं व जानना चाहते हैं, पर स्वयं को पहिचान नहीं पाते, हम सबके लिए कुछ करना चाहते हैं, पर स्वयं के लिए कुछ करने का हमें विचार भी नहीं आता। हमें सब पर करुणा आती है, पर स्वयं पर करुणा नहीं आती कि हमने ‘भगवान आत्मा' की यह क्या दुर्दशा कर रखी है ? उसके पास वह सबकुछ है, जो जगत के अधिकतम लोगों के अन्तिम लक्ष्य से भी काफी कुछ अधिक है और तब भी वह बैचेन या यूँ कहिए कि यही उसकी बेचैनी का कारण है कि “यदि इतना सब कुछ होते हुए भी चैन नहीं है तो इस मार्ग का लाभ ही क्या है ? यदि इस दौड़ में पुरजोर शामिल रहकर कुछ दूरी और भी तय कर ली तब भी क्या अपने अन्तिम लक्ष्य से अनन्त दूरी कायम न रहेगी? तो क्या यही है मेरी चरम परिणति ? यदि नहीं तो इसी पल विराम क्यों नहीं ? घोर अभावों की अवस्था में यदि कोई गलत मार्ग पर चल भी पड़ा तो सही समय आने पर उसे सही मार्ग का चुनाव कर ही लेना चाहिए न ? अरे भाई! कोई गमी के मौसम में भी सर्दी के कपड़े थोड़े ही पहने रहता है, सिर्फ इसलिए कि बुरे समय में इन कपड़ों ने मेरा साथ दिया था। यदि अब भी कपड़े न बदले गए तो एक बार फिर बुरा वक्त आते देर न लगेगी। पैसा! पैसा!! पैसा!!! जाने क्या आकर्षण है इस पैसे में ? सारी दुनिया पागल हुई जा रही है इसके पीछे । माना कि पैसे से भोग सामग्री मिलती

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