Book Title: Antakruddasha ki Vishay Vastu Ek Punarvichar Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf View full book textPage 6
________________ १७ अन्तकृद्दशा की विषयवस्तु : एक पुनर्विचार अन्तकृद्दशा की विषयवस्तु सम्बन्धी सन्दर्भ (१) स्थानाङ्ग (सं० मधुकरमुनि) दशम स्थान, सूत्र ११० एवं ११३ दस दसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-कम्मविवाग-दसाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसायो, अणुत्तरोववाइयदसाओ आयारदसाओ, पण्हावागरणदसाओ, बंधदसाओ, दोगिद्धिदसाओ, दीहदसाओ, संखेवियदसाओ। एवं अंतगडदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा णमि मातंगे सोमिले, रामगुत्ते सुदंसणे चेव । जमाली य भगाली य, किंकसे चिल्लएतिय । फाले अंबडपुत्ते य एमेते दस आहिता ॥ (२) समवायाङ्ग (सं० मधुकर मुनि) प्रकीर्णक समवाय सूत्र, ५३९-५४० से किं तं अंतगडदसाओ ? अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराई उज्जाणाई चेइयाई वणसंडाइ रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइ धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई पडिमाओ बहुविहाओ, खमा अज्जवं मद्दवं च, सोअंच सच्चसहियं, सत्तरसविहो य संजमो, उत्तमं च बंभं, आकिंचणया तवो चियाओ समिइगुत्तीओ चेव, तह अपप्मायजोगो. सज्झायज्झाणाण य उत्तमाण दोण्हंपि लक्खणाई।। पत्ताण य संजमुत्तमं जियपरीसहाणं चउन्विहकम्मखयम्मि जह केवलस्स लंभो, परियाओ जत्तिओ य जह पालिओ मुणिहिं, पायोवगओ य जो जहिं, जत्तियाणि भत्ताणि छेयइत्ता अंतगडो मुणिवरो तमरयोघविप्पमुक्को, मोक्खसुहमणुत्तरं च पत्ता। एए अण्णे य एवमाइअत्था वित्यारेणं परूवेई । ___ अंतगडदसासु णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ।, से णं अंगठ्ठयाए अट्ठमे अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयणा सत्त वग्गा दस उद्देसणकाला दस समुद्देसणकाला संखेज्जाइपयसयसहस्साइपयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा अणंता गमा अणंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णि बद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ताभावा आधविज्जति पण्णा विज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । से एवं आया एवं णाया एवं विण्णाया एवं चरण करण-परूवणया आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सेत्तं अंतगडदसाओ। (३) नन्दीसूत्र (सं० मधुकर मुनि) सूत्र ५३, पृ० १८३, से किं तं अंतगडदसाओ? अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराई, उज्जाणाइ, चेइआइ वणसंडाई समोसरणाइ, रायाणो, अम्मा-पियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइअ-परलोइआइड्ढि विसेसा, भोग Jain Education International For Private & Personal Use Only wwwjainelibrary.orgPage Navigation
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