Book Title: Angvijja me Jain Mantro ka Prachintam Swarup Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_6_001689.pdf View full book textPage 6
________________ ७४ अच्छिड्डाणि भासिहिसि, ततो अजिणो जिणसंकासो भविस्ससि, अंगविज्जासिद्धी स्वाहा । परिसंखा णेतव्वा, तच्छीसोपरि पुढवीयं ठिती विण्णेया। इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रस्तुत ग्रन्थ में अनेक प्रसंगों में विद्या और मन्त्र साधना सम्बन्धी निर्देश उपस्थित हैं। इसके आधार पर इसे जैन मान्त्रिक साधना का प्रारम्भिक ग्रन्थ माना जा सकता है। _इस ग्रन्थ की सबसे मुख्य विशेषता यह है कि इसमें जैन धर्म के प्राचीन एवं प्रमुख पंच परमेष्ठी नमस्कार मंत्र के विविध रूप देखने को मिलते हैं, जिसके आधार पर नमस्कार मंत्र की विकास यात्रा को ऐतिहासिक दृष्टि से समझा जा सकता है। उदाहरण के रूप में इसमें नमस्कार मंत्र के द्विपदात्मक, त्रिपदात्मक और पंचपदात्मक ऐसे तीन रूप मिलते हैं। द्विपदात्मक मंत्र नमो अहरंताणं, नमो सव्व सिद्धाणं। ज्ञातव्य है कि प्राचीनतम जैन अभिलेखों में खारवेल का हत्थीगुफा अभिलेख, जो लगभग ईसा पूर्व दूसरी शती का है उसमें 'नमो अरहंतानं', 'नमो सव्व सिद्धानं' ऐसा द्विपदात्मक नमस्कार मंत्र मिलता है, किन्तु आज तक उसका कोई साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं था। उसके साहित्यिक साक्ष्य के रूप में हमें अंगविज्जा में सर्वप्रथम यह द्विपदात्मक नमस्कार मंत्र मिला है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें सिद्ध पद के पूर्व 'सच' पाठ है और इस पाठ को स्वीकार करने से पांचों पदों में सात-सात अक्षर हो जाते हैं। क्योंकि अंगविज्जा में त्रिपदात्मक नमस्कार मंत्र में 'नमो सव्व साहूणं' पाठ मिलता है। त्रिपदात्मक नमस्कार मंत्र :- नमो अरहंताणं, नमो सव्व सिद्धाणं, नमो सव्व साहूणं। यहाँ एक विशेष बात यह देखने को मिलती है कि 'नमो सव्वसाहूणं पाठ' में 'लोए' पाठ नहीं है। किन्तु अंगविज्जा में दोनों तरह के पाठ मिलते हैं यथानमो लोए सव्व साहूणं और नमो सव्व साहूणं। इसी प्रकार पंचपदात्मक नमस्कार मंत्र भी इस ग्रन्थ के मंत्र भाग में उपलब्ध है। पंच पदात्मक नमस्कार मंत्र :- नमो अरहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्व साहूणं। ज्ञातव्य है कि अंगविज्जा के पंचपदात्मक नमस्कार मंत्र में दूसरे पद के दोनों रूप मिलते हैं- 'नमो सिद्धाणं' और 'नमो सव्व सिद्धाणं' किन्तु हमें इस ग्रन्थ में नमस्कार मंत्र की चूलिका नहीं मिली है। इससे यह सिद्ध होता है कि यह राण, नमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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