Book Title: Anekant aur Syadwad Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 6
________________ अनेकान्त और स्याद्वाद वस्तु का स्वरूप अनेकान्तात्मक है। प्रत्येक वस्तु अनेक गुण-धर्मों से युक्त है। अनन्त धर्मात्मक वस्तु ही अनेकान्त है और वस्तु के अनेकान्त स्वरूप को समझाने वाली सापेक्ष कथनपद्धति को स्याद्वाद कहते हैं। अनेकान्त और स्याद्वाद में द्योत्य-द्योतक सम्बन्ध है। समयसार की आत्मख्याति टीका के परिशिष्ट में आचार्य अमृतचन्द्र इस सम्बन्ध में लिखते हैं - "स्याद्वाद समस्त वस्तुओं के स्वरूप को सिद्ध करने वाला अर्हन्त सर्वज्ञ का अस्खलित (निर्बाध) शासन है। वह (स्याद्वाद) कहता है कि अनेकान्त स्वभाव वाली होने से सब वस्तुएँ अनेकान्तात्मक हैं। जो वस्तु तत् है, वही अतत् है; जो एक है, वही अनेक है; जो सत् है, वही असत् है; जो नित्य है, वही अनित्य है; - इसप्रकार एक वस्तु में वस्तुत्व की उत्पादक परस्पर विरुद्ध दो शक्तियों का प्रकाशित होना अनेकान्त है।" ____ अनेकान्त शब्द 'अनेक' और 'अन्त' दो शब्दों से मिलकर बना है। अनेक का अर्थ होता है - एक से अधिक। एक से अधिक दो भी हो सकते हैं और अनन्त भी। दो और अनन्त के बीच में अनेक के अनेक अर्थ सम्भव हैं । तथा अन्त का अर्थ होता है धर्म अथवा गुण। प्रत्येक वस्तु में अनन्त गुण विद्यमान हैं; अतः जहाँ अनेक का अर्थ अनन्त होगा, वहाँ अन्त का अर्थ गुण लेना चाहिए। इस व्याख्या के अनुसार अर्थ होगा - अनन्तगुणात्मक वस्तु ही अनेकान्त है; किन्तु जहाँ अनेक का अर्थ दो लिया १. अनेकान्तात्मकार्यकथनं स्याद्वादः । - लघीयस्त्रय टीका २. स्याद्वादो हि समस्तवस्तुतत्त्वसाधकमेकमस्खलितं शासनमर्हत्सर्वज्ञस्य। स तु सर्वमनेकांतात्मकमित्यनुशास्ति, ......... तत्र यदेव तत्तदेवातत्, यदेवैकं तदेवानेकं, यदेव सत्तदेवासत्, यदेव नित्यं तदेवानित्यमित्येकवस्तुवस्तुत्वनिष्पादकपरस्पर विरुद्धशक्तिद्वयप्रकाशनमनेकान्तः ।Page Navigation
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