Book Title: Anekant aur Syadwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 13
________________ अनेकान्त और स्याद्वाद तो वह सम्पूर्ण हाथी के बारे में सही नहीं होगा; क्योंकि देखा है अंश और कहा गया सर्वांश को। यदि अंश देखकर अंश का ही कथन करें तो गलत नहीं होगा। जैसे- यदि यह कहा जाय कि हाथी का पैर खम्भे के समान है, कान सूप के समान हैं, पेट दीवाल के समान है तो कोई असत्य नहीं; क्योंकि यह कथन सापेक्ष है और सापेक्ष नय सत्य होते हैं। अकेला पैर हाथी नहीं है, अकेला पेट भी हाथी नहीं है; इसीप्रकार कोई भी अकेला अंग अंगी को व्यक्त नहीं कर सकता है। ___ 'स्यात्' पद के प्रयोग से यह स्पष्ट हो जाता है कि यहाँ जो कथन किया जा रहा है, वह अंश के सम्बन्ध में है; पूर्ण वस्तु के सम्बन्ध में नहीं। हाथी और हाथी के अंगों के कथन में 'ही' और 'भी' का प्रयोग इसप्रकार होगा - हाथी किसी अपेक्षा दीवाल के समान भी है, किसी अपेक्षा खम्भे के समान भी है, और किसी अपेक्षा सूप के समान भी है। यहाँ अपेक्षा बताई नहीं गई है, मात्र इतना कहा गया है कि 'किसी अपेक्षा'; अत: 'भी' लगाना आवश्यक हो गया। यदि हम अपेक्षा बताते जावें तो 'ही' लगाना अनिवार्य हो जायेगा; अन्यथा भाव स्पष्ट न होगा, कथन में दृढ़ता नहीं आयेगी। जैसे हाथी का पैर खम्भे के समान ही है, कान सूप के समान ही हैं और पेट दीवाल के समान ही है। उक्त कथन अंश के बारे में पूर्ण सत्य है; अतः 'ही' लगाना आवश्यक है तथा पूर्ण के बारे में आंशिक सत्य है; अतः 'भी' लगाना जरूरी है। जहाँ स्यात्' पद का प्रयोग न भी हो तो भी विवेकी जनों को यह समझना चाहिए कि वह अनुक्त (साइलेन्ट) है। कसायपाहुड़ में इस सम्बन्ध में स्पष्ट लिखा है - _ "स्यात् शब्द के प्रयोग का अभिप्राय रखने वाला वक्ता यदि स्यात् शब्द का प्रयोग न भी करे तो भी उसके अर्थ का ज्ञान हो जाता है। अतएव स्यात् शब्द का प्रयोग नहीं करने पर भी कोई दोष नहीं है। कहा भी है - स्यात् शब्द के प्रयोग की प्रतिज्ञा का अभिप्राय रखने से 'स्यात् ' शब्द का अप्रयोग देखा जाता है।" १. जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश, भाग ४, पृष्ठ ५०१

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